सैयद सलमान
मुंबई
हैप्पी न्यूईयर पर फतवा
नए साल के उत्सव पर अखिल भारतीय मुस्लिम जमात (एआईएमजे) के अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने एक फतवा जारी किया है। फतवे में उन्होंने कहा कि नए साल का जश्न मनाना और बधाई देना इस्लामी शरीयत के खिलाफ है। मौलाना के अनुसार, यह त्योहार केवल ईसाइयों के लिए है और मुसलमानों को ऐसे उत्सव में भाग लेने से बचना चाहिए। यानी मौलाना रजवी ने नए साल के उत्सव को इस्लामी शरीयत के विरुद्ध माना है। फतवे में विशेष रूप से मुस्लिम युवाओं और महिलाओं से नए साल का जश्न न मनाने की अपील के साथ-साथ मुसलमानों से आग्रह किया गया है कि वे न तो नए साल की शुभकामनाएं दें और न ही स्वीकार करें। मुस्लिम समुदाय में इस फतवे को लेकर मिश्रित प्रतिक्रिया देखी जा रही है। सोशल मीडिया पोस्ट पर लोग इस फतवे पर चर्चा कर रहे हैं और इसे विवादास्पद मान रहे हैं। कई लोग इसे ध्रुवीकरण का एक प्रयास मानते हैं, जो मुसलमानों को सामाजिक मुख्यधारा से अलग करता है। वैसे भी शहाबुद्दीन रजवी अपने विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते हैं और विभिन्न सामाजिक-धार्मिक मुद्दों पर अक्सर अपनी राय देते रहते हैं, लेकिन उनका यह फतवा मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय में सांस्कृतिक परंपराओं और धार्मिक व्याख्याओं के बीच तनाव पैदा करने का कारण बन सकता है।
पशोपेश में मुसलमान
इस बीच एक अन्य मौलाना साजिद रशीदी ने फतवे की आलोचना की है। एक अन्य आलिम मोहसिन रजा ने इसे कट्टरपंथी सोच करार दिया है। इनके अलावा कई मुस्लिम नेताओं ने इसे अतिवादी बयान माना है तो फिर किसकी बात सच मानी जाए? शहाबुद्दीन रजवी की या उन उलेमा और बुद्धिजीवियों की जो फतवे के खिलाफ हैं। सारा पेंच इसी ऊहापोह का है। मुसलमान दरअसल समझ ही नहीं पाता की कौन सही है कौन गलत। इसमें उसकी कमी नहीं, उसके रहनुमाओं की कमी है, जो उन्हें व्यर्थ के मुद्दों में उलझा कर रखते हैं। अब भला नए साल की बधाई देने या लेने से शरीयत का क्या वास्ता? शरीयत की किसी किताब में इसका जिक्र शायद ही हो। एक धर्मनिरपेक्ष मुल्क में तमाम तरह के त्योहार मनाए जाते हैं, उसमें बड़ी संख्या में मुसलमान हिस्सा लेते हैं। हिस्सा न भी लेते हों तो कम से कम बधाइयां तो जरूर देते हैं। आखिर इसमें गलत क्या है? शहाबुद्दीन रजवी जैसे आलिम अगर इस तरह के बयानात न दें तो इसलिए बेहतर है, क्योंकि इससे मुसलमानों को कट्टरपंथी मान कर उनको शर्मिंदा और दरकिनार किया जाता है।
कुरआन और फिजूल फतवा
इस्लामी कानून को शरिया के नाम से जाना जाता है और शरिया का मतलब है ईश्वर के कानून का पालन करने का मार्ग। यह कानून व्यक्ति को अधिकांश दैनिक मामलों में मार्गदर्शन देने के लिए अपने दृष्टिकोण में व्यापक और उदार है। शरिया कानून सभी सार्वजनिक और निजी व्यवहार को नियंत्रित, नियमबद्ध और कुछ मामलों में प्रतिबंधित करता है। इसमें व्यक्तिगत स्वच्छता, आहार और बच्चे के पालन-पोषण के तत्वों के लिए नियम हैं। यह प्रार्थना, उपवास, गरीबों को दान देने और कई अन्य धार्मिक मामलों के लिए विशिष्ट नियम भी निर्धारित करता है। शरिया कानून के कई स्रोत हैं, जिनसे इसके मार्गदर्शक सिद्धांत निकाले जा सकते हैं। यह अपने व्यापक ज्ञान आधार के लिए किसी एक स्रोत पर निर्भर नहीं है। शरिया कानून का पहला, महत्वपूर्ण और प्राथमिक तत्व पवित्र कुरआन है। कुरआन की किसी आयत में यह फिजूल बात कतई नहीं मिल सकती कि नववर्ष की बधाई न दी जाए।
मुस्लिम धर्म अपने धार्मिक विद्वानों के लिए एक लेबल के रूप में उलेमा शब्द का उपयोग करता है। यह आलिम का बहुवचन है। इन उलेमा से व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों तरह के कई मामलों पर सलाह ली जाती है। इन्हीं उलेमा में से कई मुफ्ती भी होते हैं, जिन्हें फतवा देने का अधिकार होता है। फतवा कुरआन और हदीस की रोशनी में दिया जाता है, लेकिन कई मामलों में मुफ्ती हजरात की अपनी राय भी शामिल हो जाती है, जो उनके अध्ययन के अनुसार होती है।
इस्लाम की उदार छवि?
फतवा एक तरह का मश्वरा होता है, जिसे मानना न मानना व्यक्ति के विवेक पर निर्भर करता है। अक्सर विवादित और अनावश्यक फतवों की आड़ में मुसलमानों को निशाना बनाया जा चुका है। ऐसे में फतवा देते हुए मुफ्ती हजरात को भी सतर्क रहने की जरूरत होती है। आज दुनिया में इस्लाम को तोड़-मोरड़ कर पेश किया जा रहा है। ऐसे में उलेमा और मुफ्ती हजरात की बड़ी जिम्मेदारी बनती है कि वे इस्लाम की असल उदार छवि से दुनिया को रू-बरू करवाएं। नववर्ष या किसी त्योहार की बधाई देने से मुसलमानों का ईमान कमजोर नहीं होता, बल्कि वह अखलाकी तौर पर उदार और बड़ा बन जाता है। दूसरी बात, क्या मुसलमान का ईमान इतना कमजोर है कि गैर मुस्लिमों को बधाई देने से उसमें खोट आ जाए?
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)