सैयद सलमान मुंबई
साईं बाबा के धर्म पर उठे विवाद ने समाज में एक महत्वपूर्ण चर्चा को जन्म दिया है। यह विवाद साईं बाबा की पहचान को लेकर है, जिसमें उन्हें मुस्लिम या हिंदू के रूप में वर्गीकृत करने का प्रयास किया गया है। खासकर, वाराणसी में साईं बाबा की मूर्तियों को हटाने का विवाद हाल ही में फिर से उभरा है, जिसमें हिंदू संगठनों का तर्क है कि साईं बाबा एक मुस्लिम संत थे, इसलिए उनकी पूजा सनातन धर्म में उचित नहीं है। केंद्रीय ब्राह्मण महासभा और सनातन रक्षक दल ने इस अभियान को आगे बढ़ाया है, जिसके तहत १४ मंदिरों से मूर्तियां हटाई गई हैं और २८ अन्य मंदिरों को भी निशाना बनाया गया है। साईं बाबा के धर्म पर विवाद तब बढ़ा, जब कुछ धार्मिक नेता उन्हें मुस्लिम बताने लगे। उनका तर्क था कि साईं बाबा की मजार के आकार से यह सिद्ध होता है कि वे मुस्लिम थे। वैसे, साईं बाबा का जन्म स्थान और उनके माता-पिता के बारे में कोई ठोस प्रमाण नहीं है, जिससे उनके धर्म का स्पष्ट पता चलता हो। हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि उनका नाम चांद मियां था, लेकिन वह साईं के नाम से ही जाने गए।
साईं बाबा ने अपने जीवन में हिंदू और मुस्लिम दोनों परंपराओं का पालन किया। उन्होंने कभी किसी विशेष धर्म को अपनाने का दावा नहीं किया, बल्कि मानवता की सेवा को प्राथमिकता दी। उनके जीवन और शिक्षाओं में हिंदू-मुस्लिम दोनों परंपराओं का समावेश है। उन्होंने धूनी जलाने की परंपरा का पालन किया, जो नाथ संप्रदाय के संतों में आम है। साईं बाबा ने घुटने तक लंबी कफनी पहनने और कपड़े की टोपी लगाने की प्रथा अपनाई, जो सूफी फकीरों की पहचान है। वे अक्सर ‘अल्लाह मालिक’ जैसे शब्दों का प्रयोग करते थे। ‘सबका मालिक एक’ उनका प्रसिद्ध वाक्य है। यह वाक्य केवल एक धार्मिक या आध्यात्मिक विचार नहीं, बल्कि मानवता की एकता का प्रतीक है, जो एक-दूसरे के प्रति सहानुभूति और प्रेम विकसित करने के लिए प्रेरित करता है।
साईं बाबा के अनुयायी उन्हें एक संत और गुरु मानते हैं, जो सभी धर्मों के लिए समान हैं। कुछ अनुयायी यह मानते हैं कि साईं बाबा का संदेश प्रेम और एकता है, इसलिए उनकी मूर्तियों को मंदिरों में रखना उचित है। वे इसे धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक मानते हैं। साईं बाबा के अनुयायी उनकी शिक्षाओं और मानवता के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्राथमिकता देते हैं। जैसे कि साईं बाबा ने अपने अनुयायियों को सिखाया कि सभी इंसान एक ही ईश्वर की रचना हैं, इसलिए हमें एक-दूसरे के प्रति प्रेम और सम्मान दिखाना चाहिए। साईं बाबा ने कहा कि जब हम दूसरों की भलाई के लिए काम करते हैं, तब हम वास्तव में ईश्वर की सेवा कर रहे होते हैं। साईं बाबा ने अपने अनुयायियों को सिखाया कि बाहरी संसार की चीजों से लगाव छोड़कर आंतरिक शांति की खोज करें, क्योंकि सच्चा संतोष बाहरी परिस्थितियों से नहीं, बल्कि आंतरिक स्थिति से आता है। उन्होंने अपने अनुयायियों को नैतिकता, दान और दूसरों की सहायता करने का उपदेश दिया, जिससे व्यक्ति को मानसिक और आध्यात्मिक संतोष प्राप्त होता है।
जहां तक मुसलामानों की बात है, वह साईं बाबा को एक सूफी-संत के रूप में स्वीकार करते हैं। शिरडी स्थित मंदिर प्रांगण में ही कुछ दूसरी पर स्थित उनकी मजार शरीफ पर फातिहा पढ़ने भी जाते हैं। हालांकि, वे साईं बाबा को पूरा सम्मान देते हैं, लेकिन पूजा नहीं करते। उनके लिए साईं बाबा का संदेश महत्वपूर्ण है, न कि भौतिक रूप। इस्लाम में मूर्तियों और चित्रों की पूजा को निषेध किया गया है। मुसलमानों का मानना है कि अल्लाह एक अदृश्य और असीमित शक्ति है, जिसे किसी भी भौतिक रूप में नहीं ढाला जा सकता। साईं बाबा का संदेश प्रेम, सहिष्णुता और मानवता की सेवा पर आधारित था, इसलिए यह बात मायने नहीं रखती कि वे किस धर्म से आते हैं। साईं बाबा एक ऐसे सूफी-संत थे, जिन्होंने हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों को प्रेम, सहिष्णुता और मानवता की सेवा का पाठ पढ़ाया। तभी शिरडी में कम आबादी वाली मुसलमानों की बस्ती में हिंदू भाइयों से उन्हें ज्यादा सम्मान मिला। वर्षों बाद इस विवाद को कड़वाहट में बदलना सामाजिक स्तर पर विभेद पैदा कर रहा है। साईं बाबा लोगों को जोड़ते हैं, शायद यही बात तोड़नेवालों को रास नहीं आ रही। साईं बाबा के धर्म को लेकर विवाद अक्सर राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ में उठता है। साईं बाबा ने कहा था कि हर व्यक्ति में ईश्वर का अंश है, इसलिए हमें एक-दूसरे से प्रेम करना चाहिए। शायद हम में से एक तबका इस शिक्षा को भूल कर विवाद को प्राथमिकता दे रहा है। जरूरी यह नहीं कि साईं बाबा की मूर्ति रहे न रहे, जरूरी है साईं बाबा की प्रेम और क्षमा की शिक्षा के माध्यम से मानवता के प्रति एक गहरा दृष्टिकोण समाज के सामने रखा जाए।
(लेखक मुंबई विश्वविद्यालय, गरवारे संस्थान के हिंदी पत्रकारिता विभाग में समन्वयक हैं। देश के प्रमुख प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)