अजय श्रीवास्तव
यहूदियों पर अत्याचार का इतिहास बहुत पुराना है। ये सिलसिला द्वितीय विश्वयुद्ध से शुरू हुआ और मध्यपूर्व में आज भी जारी है। ये अलग बात है कि अब यहूदियों ने र्इंट का जवाब पत्थर से देना सीख लिया है, लेकिन ऐसा आज से सौ साल पहले नहीं था। जर्मनी समेत यूरोप के कई देशों में यहूदी बहुत अच्छी संख्या में शांतिपूर्ण ढंग से रहते थे। यहूदी मेहनतकश थे और ये व्यापार में माहिर थे। नाजी जर्मनी के लोगों को लगता था कि इनकी वजह से यहां के लोग ठीक से व्यापार नहीं कर पा रहे हैं, धीरे-धीरे इनमें असंतोष बढ़ने लगा।
साल १९३३ में अडोल्फ हिटलर जर्मनी की सत्ता में आया और उसने एक नस्लवादी साम्राज्य की स्थापना की, जिसमें यहूदियों को सब-ह्यूमन करार दिया गया और उन्हें इंसानी नस्ल का हिस्सा नहीं माना गया। हिटलर की नाजी सरकार ने अल्पसंख्यक यहूदियों के ऊपर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाना शुरू कर दिया। परिणाम यह हुआ कि जर्मनी में यहूदी अलग-थलग पड़ने लगे। हिटलर के अन्य देशों के दमनकारी नीतियों का परिणाम ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ सन् १९३९ में शुरू हो गया। हिटलर विश्व विजय करना चाहता था और इसके लिए उन्होंने अन्य देशों पर आक्रमण करना शुरू कर दिया।
द्वितीय विश्वयुद्ध के चलते रहने के बीच हिटलर ने यहूदियों को जड़ से मिटाने के लिए अपने ‘अंतिम हल’ को अमल में लाना शुरू कर दिया। नाजी जर्मनी की सेना यहूदियों को कुछ खास इलाकों में ठूंसने लगी।
यहूदियों को गैस चैंबर में ले जाकर जहरीली गैस से मार दिया जाता था। युद्ध के बाद सामने आए दस्तावेजों से पता चलता है कि हिटलर का मकसद दुनिया से एक-एक यहूदी को खत्म करना था। युद्ध के छह साल के दौरान नाजियों ने तकरीबन ६० लाख यहूदियों की हत्या कर दी, जिसमें १५ लाख बच्चे थे। यहूदियों को जड़ से मिटाने के अपने मकसद को हिटलर ने इतने प्रभावी ढंग से अंजाम दिया कि दुनिया की एक तिहाई यहूदी आबादी खत्म हो गई।
जर्मनी के अलावा उसके मित्र देशों में भी यहूदियों के नरसंहार हुए। पोलैंड में यहूदियों की कुल आबादी चौंतीस लाख थी, जिसमें तीस लाख लोगों को बेवजह मार डाला गया। सोवियत संघ में तीस लाख में से दस लाख मारे गए। इसी प्रकार रोमानिया, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, लिथुआनिया, नीदरलैंड, प्रâांस, लातविया, यूगोस्लाविया, ग्रीस, बेल्जियम आदि प्रमुख हैं।
यूरोपीय देशों से भागकर बहुत से यहूदी अपने मूल स्थान इजरायल में जाकर बसने लगे। यहूदियों का मानना है कि आज जहां इजराइल बसा हुआ है,ये वही इलाका है, जो ईश्वर ने उनके पहले पूर्वज अब्राहम और उनके वंशज को देने का वादा किया था। अतीत में इस इलाके पर बहुत से मुस्लिम कबाइली लोग बस गए जो आज के इराक, ईरान, तुर्की और सीरिया के रहनेवाले थे। इस इलाके पर बेबीलोन, पर्सिया, मकदूनिया और रोमन लोगों का हमला होता रहा था। रोमन साम्राज्य में ही इस इलाके को फिलिस्तीन नाम दिया गया था और ईसा के सात दशकों बाद यहूदी लोग इस इलाके से बेदखल कर दिए गए।
इस्लाम के अभ्युदय के साथ सातवीं सदी में फिलिस्तीन अरबों के नियंत्रण में आ गया और फिर यूरोपीय हमलावरों ने इस पर जीत हासिल की। साल १५१६ में ये तुर्की के नियंत्रण में चला और फिर पहले विश्व युद्ध तक ब्रिटेन के कब्जे में जाने तक यथास्थिति बनी रही। फलीस्तीन पर संयुक्त राष्ट्र की स्पेशल कमेटी ने तीन सितंबर १९४७ को जनरल असेंबली को अपनी रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में कमेटी के मध्य-पूर्व में यहूदी राष्ट्र की स्थापना के लिए धार्मिक और ऐतिहासिक दलीलों को स्वीकार कर लिया।
साल १९१७ के बालफोर के घोषणापत्र में ब्रिटिश सरकार ने यहूदियों को फिलिस्तीन में राष्ट्रीय घर देने की बात मान ली। इस घोषणापत्र में यहूदी लोगों के फिलिस्तीन के साथ ऐतिहासिक संबंध को मान्यता दी गई थी और इसी आधार पर फिलिस्तीन के इलाके में यहूदी राज्य की नींव पड़ी। २९ नवंबर, १९४७ को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन के बंटवारे की योजना को मंजूरी दे दी। इसमें एक अरब देश और यहूदी राज्य के गठन की सिफारिश की गई और साथ हीं येरूशलेम के लिए एक विशेष व्यवस्था का प्रावधान किया गया।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की इस योजना को यहूदियों ने स्वीकार कर लिया, लेकिन अरब लोगों ने इसे खारिज कर दिया। वे इसे अपनी जमीन खोने के तौर पर देख रहे थे। १४ मई, १९४८ को स्वतंत्र इसराइल के गठन की घोषणा कर दी गई। इसके अगले दिन इजराइल ने संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के लिए आवेदन किया और एक साल बाद उसे इसकी मंजूरी मिल गई।
अरब मुल्क इजराइल से बहुत नफरत करते हैं और समय समय पर उस पर आक्रमण भी किया जाता रहा है, लेकिन चारों तरफ से मुस्लिम राष्ट्र से घिरा इजराइल हमेशा उन्हें जंग में मात देकर और मजबूत हो जाता है। इजरायल और अरब देशों के बीच सन् १९६७ में हुए युद्ध ने मध्य-पूर्व के भौगोलिक नक्शे को ही बदल दिया था।
जून १९६७ में इजरायल और अरब देशों मिश्र, सीरिया और जॉर्डन के बीच छह दिन चली जंग के नतीजे एतिहासिक रहे। इससे पहले इस युद्ध को टालने के लिए इजरायल और अरब देशों के बीच राजनयिक खींचातानी चली, लेकिन इसे टाला न जा सका।
इजरायल की वायुसेना के हमले ने मिस्र और उसके सहयोगी देशों की एयरफोर्स को तबाह कर दिया। इस जंग में इजरायल को जीत मिली और उसने मिस्र से सिनाई प्रायद्वीप, गाजापट्टी, जॉर्डन से वेस्ट बैंक,पूर्वी येरूशलेम और सीरिया से गोलान हाइट्स छीन लिया। छह दिन चला यह युद्ध संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप और संघर्षविराम समझौते के बाद खत्म तो हुआ, लेकिन तब तक बहुत कुछ बदल चुका था।
अरब मुल्कों ने हमास और हिज्बुल्लाह जैसे अपने छद्म लड़ाकों से अनेकों बार इजरायल को अस्थिर करने की कोशिश की मगर उसे मुंह की खानी पड़ी है। ०७,अक्टूबर, २०२३ को हमास जो फिलिस्तीनी सशस्त्र बल का एक आतंकी संगठन है ने इजरायल पर बड़ा हमला किया। गाजापट्टी से इजरायल पर हजारों रॉकेट दागे गए और सैकड़ों आतंकी इजरायल की सीमा में घुसकर जबरदस्त नरसंहार किया। इस हमले में लगभग १२०० लोग मारे गए और २५० से अधिक को बंधक बना लिया गया, जो आज भी हमास के कब्जे में हैं।
हमले के अगले दिन ही इजरायल की सेना ने गाजापट्टी में हमास के ठिकानों पर तगड़ा हमला किया, जो आज भी अनवरत जारी है। गाजापट्टी की ८० फीसदी जमीन को इजरायली सेना ने नेस्तनाबूद कर दिया है। हमास के सभी बड़े नेता मारे जा चुके हैं और युद्ध के पहले हमास के पास तीस हजार लड़ाके थे, जो अब केवल सत्तरह हजार बचे हैं।
हिज्बुल्लाह लेबनान का एक शिया राजनीतिक और अर्द्धसैनिक संगठन है, जो हमास की मदद के लिए इजरायल पर हमला किया था मगर इजरायली सेना ने लेबनान में घुसकर हिज्बुल्लाह को तबाह कर दिया है। ईरान ने भी इजरायल पर हमला किया था मगर इजरायल ने उससे भी बड़ा पलटवार करते हुए ईरान को अपने हद में रहने की चेतावनी दे दी है।
चारों तरफ से वार-पलटवार के बीच इजरायल अपना अस्तित्व बचाए हुए है ये कम बड़ी बात नहीं है। इजरायल कहता है कि उस पर हमला करने वाले को वह कभी भूलता नहीं है और वो अगर पाताल में भी छुपेगा तो उसे ढूंढकर मारा जाएगा। अरब मुल्कों को और तनाव बढ़ाने से बचना होगा और इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार कर उसे एक स्वतंत्र मुल्क के रूप में मान्यता देना होगा।