रूस, अमेरिका और चीन के बाद ऐसा करने वाला भारत चौथा देश
चंद्रमा से नमूने लाने, बीएएस के निर्माण के लिए जरूरी है यह तकनीक
सामना संवाददाता / श्रीहरिकोटा
भविष्य के अंतरिक्ष मिशन के लिए महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी अंतरिक्ष ‘डॉकिंग’ का प्रदर्शन करने वाले इसरो के दो अंतरिक्ष यान सोमवार की देर रात सफलतापूर्वक एक दूसरे से अलग हो गए और उन्हें वांछित कक्षा में स्थापित कर दिया गया। मिशन के निदेशक एम. जयकुमार ने कहा कि पीएसएलवी – सी ६० मिशन को पूरा कर लिया गया है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख एस. सोमनाथ ने कहा कि रॉकेट ने १५ मिनट से अधिक की उड़ान के बाद उपग्रहों को ४७५ किलोमीटर की वृत्ताकार कक्षा में स्थापित कर दिया है। उन्होंने कहा कि जहां तक हमारा सवाल है, रॉकेट ने अंतरिक्ष यान को सही कक्षा में स्थापित कर दिया है और ‘स्पाडेक्स’ उपग्रह एक के पीछे एक चले गए हैं और समय के साथ ये आगे की दूरी तय करेंगे और उनके करीब २० किलोमीटर दूरी तय करने के बाद ‘डॉकिंग’ की प्रक्रिया शुरू होगी। गौरतलब है स्पैडेक्स का अर्थ होता है स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट यानी अंतरिक्ष में यानों को डॉक और अनडॉक करना। सोमनाथ ने मिशन नियंत्रण केंद्र में अपने संबोधन में कहा कि हमें उम्मीद है कि डाकिंग प्रक्रिया में एक और सप्ताह का समय लग सकता है और यह बहुत कम समय में यानी करीब सात जनवरी को होने जा रहा है। उन्होंने कहा कि इस मिशन में सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा पीओईएम-४ है, जिसमें स्टार्टअप, उद्योग, शिक्षा जगत और इसरो केंद्रों से २४ पेलोड हैं।
क्या होती है स्पेस डॉकिंग
स्पेस डॉकिंग अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को जोड़ने की प्रक्रिया को कहते हैं। इसके बाद दोनों उपग्रहों के बीच क्रू मेंबर्स, सामान और उपकरणों की सप्लाई हो सकेगी। अंतरिक्ष की खोज में निकले एस्ट्रोनॉट्स के लिए डॉकिंग काफी अहम होती है। इससे उन्हें विभिन्न स्पेसक्राफ्ट में यात्रा करने में आसानी होती है। वह इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में भी जा सकते हैं और अंतरिक्ष से जुड़े विभिन्न प्रयोगों और रिसर्च को अंजाम दे सकते हैं।
बेहद महत्वपूर्ण है मिशन
यह भविष्य के मानव अंतरिक्ष उड़ान के लिए महत्वपूर्ण तकनीक।
अंतरिक्ष में डॉकिंग के लिए यह किफायती प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन।
चंद्रमा पर इंसान को भेजने, चांद से नमूने लाने के लिए आवश्यक।
भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का निर्माण और संचालन में भी होंगे आत्मनिर्भर।
किसी मिशन के लिए एक से अधिक रॉकेट लांच करने पर भी होगी इस तकनीक की जरूरत।
किस तरह हासिल करेंगे सफलता
दो अंतरिक्ष यान एसडीएक्स ०१ (चेजर) और अंतरिक्ष यान एसडीएक्स ०२ (टारगेट) को ऐसी कक्षा में रखा जाएगा, जो उन्हें एक दूसरे से पांच किमी दूर रखेगी। बाद में इसरो मुख्यालय के विज्ञानी उन्हें तीन मीटर तक करीब लाने की कोशिश करेंगे, जिसके बाद उन्हें पृथ्वी से लगभग ४७० किमी की ऊंचाई पर जोड़ा जाएगा। डॉकिग की यह प्रक्रिया सोमवार को निर्धारित अंतरिक्ष यानों के प्रक्षेपण के लगभग ७ दिन बाद होने की उम्मीद है।