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स्पेस की पिच पर इसरो की धुआंधार बैटिंग …डॉकिंग-अनडॉकिंग के बाद अब मारा बड़ा सिक्सर

सैटेलाइट में बचा हुआ है काफी ईंधन

सामना संवाददाता / नई दिल्ली
भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो ने एक और बड़ी कामयाबी हासिल की है। हाल ही में भेजे गए अंतरिक्ष डॉकिंग प्रयोग स्पाडेक्स की दो सैटेलाइट्स में से एक को चारों तरफ घुमाने के बाद फिर से अपनी पुरानी पोजिशन पर वापस लौटाया है। इस प्रक्रिया को रोलिंग या रोटेटिंग प्रयोग कहा जा रहा है। यह परीक्षण १३ मार्च को दो सैटेलाइट्स के अलग होने (अनडॉकिंग) के बाद किया गया है। इस कदम की तुलना चंद्रयान-३ के ‘हॉप’ प्रयोग से की जा रही है, क्योंकि यह भी भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए महत्वपूर्ण सबक प्रदान करेगा।
इसरो चीफ वी. नारायणन का कहना है कि यह परीक्षण पिछले हफ्ते कामयाबी के साथ पूरा हो गया है। उन्होंने कहा कि सैटेलाइट्स में अभी काफी मात्रा में र्इंधन मौजूद है इसलिए टीम से कहा गया है कि हर प्रयोग को पहले जमीन पर सिमुलेशन के जरिए अच्छी तरह से परखा जाए, ताकि कोई गलती न हो और अधिकतम डेटा हासिल किया जा सके। आसान भाषा में इसरो की इस सफलता को समझें तो मान लीजिए कि आप और आपका दोस्त दिल्ली की एक शॉप के बाहर खड़े हैं। जब आप एक-दूसरे से मिलते हैं तो गले लगते हैं इसे डॉकिंग कहते हैं। फिर आपका दोस्त कुछ कदम पीछे हटता है, लेकिन आपकी नजरों के सामने रहता है, इसे अनडॉकिंग कहते हैं।
परीक्षण से क्या मिलेगा?
इस परीक्षण से इसरो को यह समझने में मदद मिलेगी कि किसी चीज को अलग-अलग दिशाओं से एक खास जगह पर वापस वैâसे लाया जा सकता है। इसके अलावा, यह चैक किया जाएगा कि क्या डॉकिंग को लंबवत रूप से किया जा सकता है, क्योंकि सैटेलाइट्स में अभी काफी र्इंधन बचा हुआ है इसलिए इसरो इस मिशन का पूरा फायदा उठाने के लिए और भी कई प्रयोग करेगा। अगली बार जब डॉकिंग होगी तो सैटेलाइट्स के बीच पावर ट्रांसफर की भी एक और कोशिश की जाएगी, जिससे भविष्य के मिशनों की योजना और विकास के लिए महत्वपूर्ण सबक मिलेंगे।

प्रयोग का मकसद
इस प्रयोग का मुख्य मकसद यह जांचना था कि इसरो जमीन से सैटेलाइट की सही स्थिति और रफ्तार को कितनी कामयाबी के साथ कंट्रोल कर सकता है। इसके लिए अलग-अलग सॉफ्टवेयर, सेंसर और पोजिशनिंग तकनीकों का परीक्षण किया गया। अभी यह साफ नहीं है कि उपग्रह ने यह रोटेशन होरिजेंटल रूप से किया या लंबवत।

चंद्रयान-४ में मिली कामयाबी
इस तकनीक को सीखना इसरो के लिए बहुत जरूरी है, क्योंकि भविष्य में इसे कई बड़े अभियानों में इस्तेमाल किया जाएगा। खासकर, चंद्रयान-४ के नमूना वापसी मिशन और गगनयान के मानव अंतरिक्ष उड़ान अभियानों में यह तकनीक बेहद महत्वपूर्ण होगी। इसरो को अलग-अलग परिस्थितियों में डॉकिंग करनी होगी, जिसके लिए स्पाडेक्स मिशन के तहत कई और प्रयोग किए जाएंगे। इसरो अगले महीने एक और डॉकिंग परीक्षण की योजना बना रहा है।

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