महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव के प्रचार चरम पर पहुंचने के बीच यह खबर सामने आई है कि देश में महंगाई रिजर्व बैंक के हाथ से बाहर हो गई है। महंगाई दर दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। अक्टूबर में महंगाई दर सितंबर के ५.४९ फीसदी से बढ़कर ६.२१ फीसदी पर पहुंच गई है। यह पिछले १४ महीने में महंगाई का उच्चतम स्तर है। फिर यह ताजा डेटा सरकार के राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग ने ही जारी किया है। बस, चुनाव के दौरान महंगाई बढ़ने की बात प्रचारित करने के लिए सरकार को राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग के कार्यालय में ताला लगाकर इस विभाग के अधिकारियों को काला पानी नहीं भेजना चाहिए! भारतीय जनता पार्टी की हमेशा से कोशिश जनता के सवाल और जरूरी मुद्दों को चुनाव अभियान से बाहर करने की होती है। इसीलिए सत्तारूढ़ दल ने पिछले १० वर्षों में मूल मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए अनर्गल विषयों को प्रचार में लाने की ‘भ्रामक तकनीक’ विकसित की है। पिछले कुछ वर्षों से घर-घर में व्याप्त महंगाई जैसे गंभीर मुद्दे से जनता का ध्यान भटकाने के लिए हुक्मरान जनता को धार्मिक उन्माद और सांप्रदायिक नफरत जैसे अवांछित विषयों में उलझाने का खेल खेल रहे हैं। मौजूदा विधानसभा चुनाव के प्रचार में भी महंगाई जैसे ज्वलंत मुद्दे पर चर्चा न हो, इसके लिए सत्ताधारियों ने एक बार फिर जनता को बेहोशी की दवा देने का प्रयास किया है। मतदान में बमुश्किल छह दिन बचे हैं; लेकिन महंगाई के मुद्दे को शिद्दत से प्रचार से दूर रखा गया है। चुनाव के अंतिम सप्ताह में और उससे पहले भी, प्रचार रणसंग्राम में तोपें तो खूब दागीं गर्इं। लेकिन इस प्रचार में जनता के मुद्दे कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। दरअसल, सरकार इस बात को लेकर खास एहतियात बरत रही है कि प्रचार में लोगों के सवाल और लोगों की जिंदगी से जुड़े मुद्दे न आएं। देश में बढ़ती बेरोजगारी पर सत्ताधारी दल बात करने को तैयार नहीं है। हिंदुस्थान की बेरोजगारी दर आजादी के बाद पिछले १० वर्षों में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। इस पर सत्ताधारी दल के प्रवक्ता एक शब्द तक नहीं बोलते। पिछले १० वर्षों में कृषि उत्पादन लागत दोगुनी से अधिक हो गई है और कृषि कीमतें अभी भी वही हैं जो १० साल पहले थीं। ऊंची कीमतों और खेती के कुल नुकसान के कारण महाराष्ट्र सहित देश भर में किसानों की आत्महत्या की संख्या में वृद्धि हुई है। इन पर भी सत्ताधारी दल चुनाव प्रचार में एक शब्द नहीं बोलता। पूरे देश में महंगाई का तांडव जारी है। अनाज, खाद्य तेल, पेट्रोल-डीजल, रसोई गैस, बीज, खाद, दालें, आटा-नमक, चाय-चीनी और अब सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं। किसानों से सस्ते में खरीदे जाने वाले प्याज की कीमत बाजार में दोगुनी से भी ज्यादा में बेचकर मुनाफाखोरी जारी है। रोजाना खाना पकाने में इस्तेमाल होने वाला लहसुन तो सोने के दाम पर पहुंच गया है। ६० से ८० रुपए प्रति किलो की दर से मिलने वाला लहसुन आज ६०० रुपए तक पहुंच गया है। पाव किलो लहसुन के लिए १५० रुपए गिनने पड़ रहे हैं। यही हाल अन्य सब्जियों के दामों का भी है। सभी आवश्यक वस्तुओं के दाम पहुंच से बाहर हो जाने से महिलाओं का रसोई का बजट चरमरा गया है। १० साल पहले ‘बहुत हो गई महंगाई की मार…’ का नारा देकर सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी ने जनता को महंगाई की मार से तो नहीं बचाया; उल्टे महंगाई दोगुनी बढ़ा दी। राष्ट्रीय सांख्यिकी विभाग द्वारा जारी महंगाई के ताजा आंकड़े चिंताजनक हैं। अथक प्रयासों के बावजूद, नए-नए रिकॉर्ड बनाती महंगाई रिजर्व बैंक के हाथों से निकल गई है। देश में खुदरा महंगाई दर १४ महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। सभी आवश्यक वस्तुओं और खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी का जीना मुहाल कर दिया है। लेकिन महंगाई के खिलाफ स्यापा कर सत्ता में आने वाले हुक्मरान आज महंगाई का ‘म’ कहने को भी तैयार नहीं हैं। भाजपा ने महंगाई की बजाय चुनाव में हिंदू, मुस्लिम, निजाम, औरंगजेब, ‘बंटेंगे तो कटेंगे’, ‘एक रहो, सेफ रहो’ जैसे सांप्रदायिक कटुता पैदा करने वाले नारे और उन्मादी विषय लाकर प्रचार का स्तर गिरा दिया है। सत्ताधारी दल के जो नेता प्रचार के लिए गांव या दरवाजे पर आते हैं, मतदाताओं को चाहिए कि वे उनसे फटकार लगाते हुए जवाब तलब करें, ‘हिंदू-मुसलमान को छोड़िए, उसे हम संभाल ही लेंगे, पहले ये बताओ कि तुम महंगाई कब कम करोगे!’