मुख्यपृष्ठस्तंभअहंकार मिटा, ऐंठन तोड़ना जरूरी

अहंकार मिटा, ऐंठन तोड़ना जरूरी

राजेश विक्रांत

कहते हैं कि अहंकार इंसान की सबसे बड़ी बुराई है, इससे पीड़ित इंसान का सत्यानाश होना ही होना है। मोदी के साथ यही हुआ है। अबकी बार ४०० पार के नारे की धज्जियां उड़ गई हैं। ३०० भी नहीं मिला। २९१ पर रुक गए। ४०० पार का सारा अहंकार टूट गया। अब जोड़-तोड़ की सरकार उनकी किस्मत है। लेकिन हिंदुस्थान की खुशकिस्मती है, क्योंकि बहुमत के नाम पर मोदी में प्रचंड अहंकार आ गया था। इतना अहंकार कि मुंबई की भाषा में वड़ा-पाव खाते, बड़ी-बड़ी बातें करते। लेकिन मतदाताओं ने उन्हें उनकी औकात दिखा दी और संदेश दिया कि बोलबचन व तानाशाही का हश्र बुरा ही होता है। अब अहंकार तो टूट गया है लेकिन ऐंठन वही है, इसे भी तोड़ना जरूरी है तभी लोकतंत्र की खूबसूरती बनी रह पाएगी।
अहंकार ने सभी नैरेटिव को ध्वस्त कर दिया। ४०० पार का धुआं उड़ गया। राम मंदिर के बाद भी अयोध्या हार गए। राम मंदिर के इर्द-गिर्द की सीटें हारी। मध्य उत्तर प्रदेश की २४ सीटों में भाजपा को सिर्फ ९ मिली, जबकि २०१९ में सीटों की संख्या २४ थी। खुद मोदी ने जिस वाराणसी सीट को पिछले दो चुनावों में ४,७९,५०५ तथा ३,७१,७८४ के अंतर से जीता था, इस बार उनकी जीत का अंतर घटकर १,५२,५१३ रह गया। मोदी के ४ वैâबिनेट मंत्रियों सहित कुल १९ मंत्री हार गए। पश्चिम बंगाल में संदेशखाली को भाजपा ने खूब प्रचारित किया था, लेकिन नतीजा यह रहा कि टीएमसी २९ सीटें झटक ले गई। आम चुनाव से ठीक पहले २५ दल-बदलुओं को भाजपा ने लुभाया और उन्हें टिकट दिया, इसमें से २० हार गए।
इसकी वजह अहंकार ही है। खुद को दूसरों से श्रेष्ठ मानने की गंदी आदत। यह एक ऐसा मनोविकार है, जिसमें इंसान को न तो अपनी गलतियां दिखाई देती हैं और न ही दूसरों की अच्छी बातें। वह अपने को ही सबसे सर्वोपरि मानने लगता है और इसी तरह से दूसरों से व्यवहार भी करता है। जब अहंकार बलवान हो जाता है, तब वह इंसान की चेतना को अंधेरे की परत की तरह घेरने लगता है। वह इंसान की बुद्धि व विवेक को खा जाता है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में अहंकार को आसुरी प्रवृत्ति माना है, जो इंसान को निकृष्ट एवं पापकर्म करने की ओर अग्रसर करता है। जिस प्रकार नींबू की एक बूंद हजारों लीटर दूध को बर्बाद कर देती है, उसी प्रकार इंसान का अहंकार अच्छे से अच्छे संबंधों को भी बर्बाद कर देता है। अहंकार को इंसान के जीवन में उन्नति की सबसे बड़ी बाधा माना गया है। अहंकारी मनुष्य परिवार और समाज को अधोगति की ओर ले जाता है। मोदी के मामले में भी यही हुआ। दो बार की सत्ता ने उन्हें अहंकारी बना दिया, वे अपने को सबसे ऊपर समझने लगे। उनके दिमाग में आ गया कि मैं सब कुछ कर सकता हूं। संविधान बदल सकता हूं। आरक्षण खत्म कर सकता हूं। जिसको चाहूं उसे घर बिठा सकता हूं, उसकी राजनीति पर विराम लगा सकता हूं, जेल भेज सकता हूं। मोदी के इस तरह के अहंकार के चलते भाजपा ३७० का अपना लक्ष्य भी नहीं पा सकी। उसकी गाड़ी २४० पर अटक गई। और दो दल-बदलू को टिकट। अपने लोगों की उपेक्षा करो। यही हश्र होगा।
संविधान बदलने व आरक्षण खत्म करने के षड्यंत्र का खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा। पिछले चुनाव में देशभर की कुल १३१ सुरक्षित सीटों में से भाजपा को ८२ मिली थी। इस बार उसे ५३ से ही संतोष करना पड़ा, जबकि विपक्षी गठबंधन ६१ सीटें ले उड़ा। उत्तर प्रदेश को लेकर भाजपा ने बड़े-बड़े सपने देखे थे, लेकिन ८० सीटों वाले उत्तर प्रदेश में उसे सिर्फ ३७ सीटें ही मिल पाई। किसानों की नाराजगी, अर्थव्यवस्था का सत्यानाश, महंगाई व बेरोजगारी में वृद्धि, सरोकारों पर सक्रिय चेहरों की कमी, प्रत्याशियों की अलोकप्रियता, दलबदलू, सांसदों की बेरुखी आदि फैक्टर से ज्यादा मोदी की नैया उनके अहंकार ने डुबाई। ये जरूरी भी था। लेकिन रस्सी जल तो गई पर उसकी ऐंठन नहीं गई है। ये ऐंठन तोड़नी होगी। इस ऐंठन को ध्वस्त करना होगा और ये काम इंडी गठबंधन अच्छे से कर सकता है। सत्ता में आने से रोकिए। ऐंठन टूट जाएगी।

 

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