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बुनियादी सेवाएं देना सरकार की जिम्मेदारी … जब दे नहीं सकते हो तो घोषणाएं क्यों? …हाई कोर्ट का ‘ईडी’ २.० पर फिर चला चाबुक

सामना संवाददाता / मुंबई
देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजीत दादा पवार की सरकार बातें बनाने और घोषणाएं करने में अव्वल है। पर वे घोषणाएं कितनी अमल हो पाती हैं, इससे उसे कोई मतलब नहीं है। इस बारे में अदालत की फटकार भी उसे मिलती रहती है, पर वह सुधरने का नाम ही नहीं लेती। इसी सिलसिले में महायुति सरकार को मुंबई हाईकोर्ट से एक बार फिर फटकार सुनने को मिली है। असल में, राज्य में महायुति सरकार बड़ी-बड़ी घोषणाएं करती है, लेकिन निधि के नाम पर विभागों को कुछ नहीं देती है। स्वास्थ्य योजना हो, बीमा योजना हो, शिक्षा के लिए योजना हो या रोजगार के लिए योजना हो, इस सरकार ने जमकर घोषणाएं की हैं, लेकिन निधि नहीं मिलने से तमाम योजनाएं बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण स्वास्थ्य विभाग है, जहां सरकार ने घोषणा के एक वर्ष गुजर जाने के बाद भी निधि नहीं दी। हाई कोर्ट ने स्पष्ट रूप से पूछा है कि जब दे नहीं सकते हो, तो घोषणा क्यों करते हो?

इलाज के लिए निधि का इंतजार
अदालत ने पूछा है कि क्या लोगों को इलाज के लिए आपकी निधि का इंतजार करना चाहिए? नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में हुई मौतों को लेकर राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग को विस्तार से अपना पक्ष रखने के निर्देश उच्च न्यायालय ने दिया है।

बुनियादी सुविधाएं सरकार की जिम्मेदारी
कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट कहा कि जनता को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। अगर सरकारी निधि समय पर नहीं मिलेगी, तो उसे घोषित करने का क्या फायदा? ऐसा सवाल मुंबई हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है।

स्वत: लिया था संज्ञान
साल २०२३ में नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में हुई मौतों पर हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए याचिका दर्ज की थी। दो दिनों में कुल ३१ मौतें हुई थीं। इस घटना पर न्यायालय ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी। उसी मामले में सुनवाई के दौरान अदालत ने स्पष्ट किया था कि नांदेड़ अस्पताल में मौतों का कारण ‘स्टाफ की कमी’ नहीं दिया जा सकता।

दवा न होने से गई थी मरीजों की जान
एक दिन में हुई थी ३४ मौतें

एक अक्टूबर २०२३ को नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में एक ही दिन में २४ मरीजों की मौत हुई थी। इसमें १२ नवजात शिशु भी शामिल थे। अगले दो दिनों में सात और मरीजों की जान गई, जिनमें चार बच्चे शामिल थे। इस घटना के बाद अस्पताल में दवाओं की भारी कमी की बात सामने आई थी। यह आरोप लगाया गया कि समय पर दवा उपलब्ध न होने के कारण मरीजों को अपनी जान गंवानी पड़ी। नांदेड़ की घटना ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया। इस हादसे ने राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी।

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