नॉन फिल्मी बैक ग्राउंड से आए अभिनेता कार्तिक आर्यन इंजीनियरिंग डिग्रीधारी हैं। वैसे उन्होंने ये साबित किया कि अगर आप अभिनय करना जानते हैं तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। प्यार का पंचनामा-२, सोनू के टीटू की स्वीटी, लुका-छिपी, भूल भुलैया २, सत्यप्रेम की कथा जैसी लगातार सफल फिल्में देने वाले कार्तिक की फिल्म `चंदू चैंपियन’ पिछले सप्ताह रिलीज हुई। चंदू चैंपियन फिल्म के अलावा कार्तिक के निजी जीवन को लेकर पूजा सामंत ने बातचीत की। पेश हैं बातचीत के कुछ अंश…
फिल्म चंदू चैंपियन को मिले-जुले रिस्पॉन्स को लेकर आपका क्या कहना है?
मुझे जो रिएक्शन मिला है, उनमें ज्यादातर फिल्म को और मेरे परफॉर्मेंस को बहुत पसंद किया गया है। अनेक लोगों ने कहा है कि फिल्म `चंदू चैंपियन’ में मेरा रोल किरदार आज तक का मेरा सबसे बेस्ट परफॉर्मेंस है। मुझे खुशी है कि इस फिल्म ने बेहद चैलेंजिंग जिंदगी जीने का मौका दिया है। शायद ही ऐसी फिल्म फिर कभी मेरे लिए बनेगी।
`चंदू चैंपियन’ को आपने स्वीकारा, उसके पीछे निर्देशक कबीर खान थे या फिर आपका किरदार?
बायोपिक मिलना मेरी खुशकिस्मती है। बायोपिक को न्याय देना एक बहुत बड़ा चैलेंज होता है। मेरे दोनों हाथों में जैसे लड्डू थे, `चंदू चैंपियन’ एक बायोपिक फिल्म थी और ऊपर से इसके निर्देशक कबीर खान। यह तो सोने पे सुहागा वाली बात हुई न! मुझे तो यह कॉन्फिडेंस है मैं अपने हर किरदार के साथ पूरा न्याय करूंगा। मेरे लिए यह पहली बायोपिक है।
मुरलीकांत पेटकर का रियल लाइफ किरदार निभाने के लिए किस तरह की तैयारी की?
सच कहूं तो मैं इस फिल्म के लिए मानो मशीन बन चुका था, जैसे मेरा किसी और से कोई सरोकार ही न हो। जिम जाना, वर्कआउट करना, बॉक्सिंग की प्रैक्टिस करना, जितना डायट मुझे बताया गया, बस उतना ही खाना यही मेरे लिए जिंदगी बन गई थी। ये रूटीन पूरे २ वर्षों तक चली। जो वर्कआउट मैं वर्षों से जिम में करता आया हूं, उसे भुलाकर मुझे नए सिरे से वर्कआउट सीखना पड़ा। उसे नियमित रूप से करना पड़ा, ताकि मेरी बॉडी मुरलीकांत पेटकर की तरह दिखे। मेरे लिए बहुत चैलेंजेज रहे, बिल्कुल जैसे नानी याद आ गई। जब मैंने कबीर खान साहब से पहली बार कहानी नैरेशन सुना तो मैं रो पड़ा। पेटकर साहब की अचीवमेंट अतुलनीय है, इस कहानी को तो हर देशवासी को जानना चाहिए।
कबीर खान से आपको किरदार निभाने में किस तरह का सहयोग मिला?
मुझे खुद में जबरदस्त ट्रांसफॉर्मेशन लाना जरूरी था। मैंने सोच लिया था कि मुझे नेचुरल तरीके से ही खुद में बदलाव लाने होंगे, कोई भी स्टेरॉइड्स जैसा शॉर्टकट नहीं अपनाउंगा। कबीर खान इस मुद्दे पर पूरी तरह से सहमत थे। मेरी फिल्म `प्रâेडी’ के बाद मेरा डाइट ३९ प्रतिशत था, जिसे मुझे १२ प्रतिशत पर लाना था। मैंने जो टार्गेट सोचा था, उस हिसाब से मैं १२ नहीं ७ प्रतिशत पर आ गया। मेरी मेहनत रंग लाई। मेरी कोशिश पर कबीर खान इतने खुश हुए कि उन्होंने फिल्म की शूटिंग के बाद मुझे रसमलाई खिलाई, जो मेरी मनपसंद मिठाई है। २ वर्षों बाद मैंने स्वीट खाया।
आपका परफॉर्मेंस नेशनल अवॉर्ड जीतने की क्षमता रखता है? क्या कहेंगे इस मुद्दे पर?
दुनिया का कोई भी एक्टर राष्ट्रीय क्या कोई भी पुरस्कार पाने की लालसा में अपनी अदाकारी नहीं दिखाता, मैंने दूर-दूर तक सोचा नहीं कि मैं इतना बड़ा पुरस्कार पाने के योग्य हूं। मैं इतना ही चाहता हूं कि मुझे दर्शकों का प्यार मिले। मेरा करियर आगे बढ़े। इस किरदार को निभाकर मैं बहुत कुछ सीखा हूं। जीवन के संघर्षों के मायने समझ में आए हैं।
क्या आप अपने करियर से संतुष्ट हैं?
मैं इस फिल्म इंडस्ट्री का, मेरे माता-पिता का, दोस्तों का और दर्शकों का बेहद शुक्रगुजार हूं। मेरे सभी फैंस जानते है कि मैं ग्वालियर का रहने वाला हूं। इंनीनियर बनना चाहता था, अव्वल मार्क्स से पास भी हुआ। मन में कभी-कभी एक्टर बनने के खयाल आते थे। संयोग से साल २०११ में लव रंजन की फिल्म `प्यार का पंचनामा’ मिली। वो फिल्म नहीं चली, फिर और दो फिल्में मिलीं-आकाशवाणी और कांची, वो भी फ्लॉप हुईं, लेकिन `प्यार का पंचनामा २’ और `सोनू के टीटू की स्वीटी’ ने मेरे करियर को स्वीट बना दिया। मैं बहुत आगे तक काम करना चाहता हूं। वैसे मेरा सफर संतोषजनक रहा।