श्रीकिशोर शाही
पता नहीं इन दिनों मेरे होठों पर रफी साहब का गाया गीत ‘जॉन जानी जनार्दन, तरा रम पम पम पम पम’ न जाने क्यों बार-बार आ जा रहा है। जब फिल्म `नसीब’ आई थी तो मैं छात्र जीवन में था। बात पुरानी है, पर इस गीत ने बरसों बाद दिलो-दिमाग पर दस्तक दी है तो इस बात की पड़ताल होनी जरूरी है कि आखिर ऐसा हो क्यों रहा है? कुछ देर बाद समझ में आया कि ये जो टैरिफ की कबड्डी चल रही है, यह उसका असर है। वाकई ट्रंप और जिनपिंग के बीच जो तरा रम पम पम पम पम चल रहा है, वह इसी गीत की तो झलक है। यारों का मैं यार दुश्मनों का दुश्मन…।
दरअसल, पिछले दो सप्ताह से ट्रंप टैरिफ-टैरिफ खेल रहे हैं। आम आदमी के लिए इस टैरिफ के खेल को समझना काफी मुश्किल काम है। टैरिफ यानी आयात पर लगनेवाला शुल्क। अमेरिका पहले मामूली टैरिफ लगाता था, पर अब उसने जैसा को तैसा का रास्ता पकड़ लिया है। यानी तुम जितना लगाओगे, उतना ही अमेरिका लगाएगा। चीन के ऊपर पहले यह ३५ फीसदी था। ट्रंप ने २० और लगा दिया तो वह ५४ हो गया। इस पर चीन को गुस्सा आया और उसने भी २० फीसदी ठोक दिया। फिर ट्रंप ने कुछ और बढ़ाया, चीन ने भी बढ़ाया। ट्रंप, चीन, ट्रंप चीन, ट्रंप चीन….तरा रम पम पम पम…रेस चालू है। फिलहाल स्कोर चीन १२५ और ट्रंप २४५ है। अब लोग इसे टैरिफ वार कह रहे हैं, पर देखा जाए तो टैरिफ तो बहाना है, असली बात तो सुपर पावर का दबदबा दिखाना है। अमेरिका तो पहले से ही आर्थिक और सामरिक सुपर पावर है। चीन आर्थिक पावर बन चुका है। सामरिक पावर भी बना है पर अमेरिका से काफी पीछे है। मगर जब पैसा यहां-वहां से छलक रहा है तो फिर ताव का आ जाना स्वाभाविक है। अब हो सकता है जब आप यह आलेख पढ़ रहे होंगे तो स्कोर में कुछ परिवर्तन और हो जाए। वैसे ये जो जियो पॉलिटिक्स है, बड़ी ही टेढ़ी चीज है। जो दिखता है वह असल में होता नहीं। पर्दे के पीछे कुछ और खेल चलता रहता है। मसलन ईरान परमाणु बम बनाने के करीब है और अमेरिका की नींद हराम हुई जा रही है। वो ईरान का लीबिया करने को बेकरार है। याद है न कर्नल गद्दाफी को भी परमाणु बम बनाने का शौक चर्राया था और अमेरिका ने उनका क्या हाल किया था। ईरान के पीछे चीन खड़ा है। तो समझे जनाब! कहीं पे निगाहें और कहीं पे निशाना वाली बात है। वैसे जियो पॉलिटिक्स की समझ रखने वालों के लिए इन दिनों रोज तरा रम पम पम पम वाली खबरें आ रही हैं। तो नजरें बनाए रखिए।