श्रीकिशोर शाही
इन दिनों न्याय जगत से काफी अजब-गजब सी खबरें आ रही हैं। निचली अदालतें कुछ कह रही हैं, हाई कोर्ट कुछ कहता है और इन सबके ऊपर बैठा सुप्रीम कोर्ट तो खैर सुप्रीम है ही। नीचे जो भी अग्निकांड के रहस्य होते हैं, उन्हें सुलझाने की पूरी कोशिश होती है। खैर, यहां हम दिल्ली हाई कोर्ट के जज वर्मा के घर में लगी आग का नहीं, बल्कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक पैâसले की चर्चा कर रहे हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक माननीय जज जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने एक ११ साल की नाबालिग के साथ हुए यौन उत्पीड़न के मामले में सुनवाई के ४ महीने बाद जो पैâसला दिया तो बवाल हो गया। जस्टिस मिश्रा ने अपने पैâसले में जो टिप्पणी की वह सुप्रीम कोर्ट को नागवार गुजरी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लिया और हाई कोर्ट के पैâसले को अमानवीय और असंवेदनशील बताया। बात ही कुछ ऐसी है। दरअसल, यूपी के कासगंज जिले में तीन लड़कों ने कथित ११ वर्षीय बच्ची को अपनी बाइक पर बैठा लिया और उसके साथ गलत हरकत की। लड़कों ने बच्ची के प्राइवेट पार्ट को दबाया और एक पुलिया के नीचे ले जाकर उसके पायजामा का नाड़ा तोड़ा और पैर खींचकर दुष्कर्म करने की कोशिश की। तभी वहां कुछ लोग आ गए और दुष्कर्मी भाग गए। तीनों गिरफ्तार हुए और निचली अदालत ने तीनों को दोषी पाया। फिर जब दोषियों ने हाई कोर्ट का रुख किया तो वहां मामला उलट गया। जस्टिस ने इसे दुष्कर्म के प्रयास का मामला मानने से इनकार कर दिया। मामला सामने आने के बाद मीडिया और सोशल मीडिया पर इसकी खूब छीछालेदर हुई। मीडिया भले ही ऐसे मामलों में संयम बरतता है, पर सोशल मीडिया पर तो लोग बिंदास अपनी राय प्रकट करते हैं। यह बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई और जस्टिस बीआर गवई ने मामले का संज्ञान ले लिया और इलाहाबाद हाई कोर्ट के पैâसले पर तुरंत रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उक्त आदेश पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि इस तरह की टिप्पणियां कानून के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं और पूरी तरह से असंवेदननशील है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे चौंकानेवाला निर्णय बताया। सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को गौर से पढ़िए तो इसके दूर तक मायने हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निर्णय किसी जल्दबाजी में नहीं दिया गया था, बल्कि इसे चार महीने तक सुरक्षित रखने के बाद सुनाया गया। इसका अर्थ यह है कि न्यायाधीश ने इसे सोच-समझकर सुनाया। सुप्रीम कोर्ट की इस फटकार के दूरगामी मायने हैं और न्यायपालिका के क्रियाकलापों की झलक दिखाने के लिए काफी है।