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रेलवे में पानी बचाने का ‘जापानी टोटका’ …ट्रेनों में मिनीवॉटर ट्रीटमेंट डिवाइस लगाने की तैयारी

सामना संवाददाता / मुंबई
क्या रेलवे ‘पानी बचाने’ के नाम पर खुद ही ‘पानी’ में डूबने जा रही है? सेंट्रल रेलवे ने पानी बचाने का मॉडल अपनाने जा रहा है। अब ट्रेनों में मिनी वॉटर ट्रीटमेंट डिवाइस लगेगा, यानी वॉश बेसिन और एसी के पानी को फ्लैश टैंक में डालकर पानी बचाने का दावा किया जा रहा है। लगता है पानी बचाने के इस मिशन में रेलवे को खुद पानी की जरूरत पड़ जाएगी।
रेलवे के अनुसार, यह योजना ‘प्रूफ ऑफ कॉन्सेप्ट’ है। इसका मतलब है कि मिनी वॉटर ट्रीटमेंट को पहले छोटे स्तर पर लगाया जाएगा। ट्रेन के कोचों में ऐसे बड़े बदलाव के लिए और ज्यादा खर्च की जरूरत होगी। कोच की डिजाइन, मेंटेनेंस और कस्टम प्लांट के लिए क्या रेलवे के पास इतना बजट है? क्या इस सबका वित्तीय बोझ रेलवे के बजट पर भारी नहीं पड़ेगा?
अच्छा, यह तो मान लिया कि ८० लीटर पानी स्टोर किया जाएगा। क्या यह पानी भरने की योजना ज्यादा जटिल नहीं होगी? लंबी दूरी की ट्रेन को हर २५०-३०० किमी की दूरी पर पानी लेने या भरने की जरूरत होती है। इस दौरान ट्रेनों के शौचालयों वॉश बेसिन और एसी सिस्टम में पानी की खपत १८०० से १९०० लीटर होती है। शौचालय में (४० फीसदी) और वॉश बेसिन (६० फीसदी) का पानी शामिल है। इस पानी की आपूर्ति को बनाए रखने के लिए, रेलवे को नियमित अंतराल पर पानी भरने की जरूरत होती है। ऐसे में रेलवे का ‘पानी बचाने’ वाला तरीका क्या ज्यादा खर्चीला नहीं है।
सेंट्रल रेलवे का कहना है कि यह सिस्टम प्रभावी है। अब सवाल यह उठता है कि क्या रेलवे अपनी इस पानी बचाने की योजना में यात्रियों की बुनियादी जरूरतों पर भी ध्यान देगा?
वर्तमान में भारतीय रेलवे में केवल ०.५ फीसदी टॉयलेट्स में ही वैक्यूम सक्शन सिस्टम है और अधिकांश कोचों में पानी की गंभीर कमी है। क्या ऐसे में इस ‘पानी बचाने’ की योजना से रेलवे की सूरत बदल पाएगी या यह सिर्फ एक और कागजी योजना बनकर रह जाएगी?
यह कैसे काम करता है
पानी का संग्रहण- पहले ट्रेनों के वॉश बेसिन से निकलने वाले पानी को एक टैंक में एकत्रित किया जाता है, इसमें लगभग ८० लीटर पानी एकत्र हो सकता है। ट्रेन के एसी यूनिट्स से जो पानी निकलता है, उसे भी एक पाइप के माध्यम से वॉश बेसिन के वॉटर टैंक में लाया जाता है।
दोबारा इस्तेमाल- इस एकत्रित पानी फिर एक विशेष टैंक में भेजा जाता है। यहां उसे साफ किया जाता है। इससे नए पानी का इस्तेमाल कम हो जाता है। ट्रेन के नीचे एक छोटा सा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट होता है, जो इस एकत्रित पानी को साफ करता है। फिर इसे फ्लैश टैंक में भेजा जाता है। यह प्रक्रिया ट्रेन के टॉयलेट्स में सफाई और पानी की बचत करती है।

जापान में यह कैसे काम करता है
बता दें कि जापान की ट्रेनों में एक खास वॉटर रिसाइकलिंग सिस्टम होता है। इस सिस्टम में जब आप शौचालय में हाथ धोते हैं तो पानी नल से बहकर सिंक में जाता है। इसे फिर से फ्लैश टैंक में जमा किया जाता है। इस तरीके से वही पानी दोबारा फ्लैश करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इससे नए पानी की जरूरत कम होती है।

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