मुख्यपृष्ठग्लैमरबस एक यही ख्वाहिश रह गई!- वैजयंतीमाला

बस एक यही ख्वाहिश रह गई!- वैजयंतीमाला

फिल्मों में अपना एक अलग मकाम बनानेवाली, डांस के प्रति पैशन, गजब की फिटनेस, अनुशासित जिंदगी जीनेवाली ९० वर्षीय वैजयंतीमाला को देखने के बाद उनके प्रति मन में अपने आप आदर भाव जागृत हो जाता है। १९६८ में ‘पद्मश्री’ से सम्मानित वैजयंतीमाला को सरकार ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित करनेवाली है। पेश है, वैजयंतीमाला से पूजा सामंत की हुई बातचीत के प्रमुख अंश-
‘पद्मभूषण’ पुरस्कारों की घोषणा पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
मैं बहुत खुश हूं, लेकिन मुझसे ज्यादा खुश तो मेरा बेटा सुचिंद्र और बहू नंदिनी है।
आपको इस पुरस्कार को पाने की कितनी उम्मीद थी?
मेरी पहचान सिर्फ अभिनेत्री की नहीं, बल्कि मैं भरतनाट्यम डांसर, कर्नाटक संगीत और भक्ति संगीत की गायक और अभ्यासक हूं। मैंने तमिलनाडु के संतों और गुरुओं पर गहरा अभ्यास किया है, कई भजन मैंने गाए हैं। किशोरी आमोणकर, शोभा गुर्टू से मैंने क्लासिकल संगीत सीखा है। वैसे मुझे एहसास है एक अभिनेत्री के रूप में मेरी पहचान पुख्ता है। १९६८ में मुझे ‘पद्मश्री’ मेरे फिल्म करियर के लिए मिला था। अब जो ‘पद्मभूषण’ की घोषणा हुई है वो ओवरऑल मेरे डांस, सिंगिंग, अभिनय के लिए मिलेगा। मैं तहे दिल से शुक्रगुजार हूं जो सरकार ने मुझे इसके काबिल समझा। अपने पैंâस सहित मैं सभी की कृतज्ञ हूं। अपने करियर और जीवन से मैं बेहद संतुष्ट हूं। रहा सवाल उम्मीद का तो मैंने और मेरे परिवार में मेरे बेटे सुचिंद्र और बहू नंदिनी ने कभी किसी पुरस्कार की उम्मीद नहीं की। बिना उम्मीद के इतना बड़ा पुरस्कार पाने की खुशियां शब्दों से परे है।
पीछे मुड़कर देखने पर आप कैसा महसूस करती हैं?
पीछे मुड़कर देखने से भला क्या हासिल होगा? मैं वर्तमान में जीने पर यकीन करती हूं। अपने जीवन में मैंने ऐसी कोई गलती या ऐसा कोई काम नहीं किया, जिसका मुझे पछतावा हो। जिन फिल्मों में मैंने काम किया, उन फिल्मों ने मुझे पहचान दी। मैं हिंदी फिल्मों की पहली सुपरस्टार अभिनेत्री रही हूं।
अब आपका क्या रूटीन है?
मैं सुबह ५ बजे उठ जाती हूं। कॉफी पीने के बाद २ घंटे मेरा भरतनाट्यम का रियाज चलता है। कई बालिकाएं मुझसे भरतनाट्यम सीखने आती हैं। अखबार पढ़ने के साथ ब्रेकफास्ट होता है और पूजा-पाठ के बाद लंच होता है। योगा, प्राणायाम, मेडिटेशन भी दिन के रूटीन में शामिल है। क्लासिकल गीत सुनती हूं और दिन गुजर जाता है।
क्या कुछ ऐसा है, जिसे न पाने का आपको मलाल हुआ हो?
२००५ में मुझे लाइफटाइम अचीवमेंट और उससे पहले ‘पद्मश्री’ मिल चुका है। ये दोनों पुरस्कार मेरे लिए मायने रखते हैं। मैं अपने करियर और जिंदगी से संतुष्ट हूं। कोई गिला-शिकवा नहीं रहा और न है। मैंने शोभा गुर्टू के साथ भजन और गीत गाए हैं। किशोरी आमोणकर भजन गाएंगी और उनके अद्भुत स्वरों पर मेरे पांव थिरकेंगे, बस एक यही ख्वाहिश रह गई।
फिटनेस के लिए क्या करती हैं?
२४ घंटों में ४ घंटे मेरे भरतनाट्यम के लिए समर्पित हैं। भरतनाट्यम के जरिए ही मैंने अपनी फिटनेस पाई है। मेरी ईश्वर पर गहरी आस्था व श्रद्धा है। मैं शाकाहारी हूं और खाना कम, पानी, नारियल पानी ज्यादा पीती हूं। ब्रह्ममुहूर्त में उठकर अपने दिन की शुरुआत करती हूं और हमेशा व्यस्त रहती हूं। जीवन में नेगेटिविटी से दूर रहती हूं।
‘पद्मभूषण’ पुरस्कार की खुशियों को कैसे सेलिब्रेट किया आपने?
‘पद्मभूषण’ पुरस्कार की घोषणा होते ही बधाइयों का तांता लग गया। मुंबई से हेमा मालिनी बधाई देने चेन्नई आई थी। मुझे हेमा की यह बात बेहद प्रभावित करती है कि बेहद व्यस्त होने के बावजूद वो अपने हर रूप में बेमिसाल रही हैं। उनकी मां हेमा से कहती कि भरतनाट्यम के लिए वो मुझे फॉलो करे। मेरे लिए यह गर्व की बात है। एक इंसान के रूप में भी हेमा काबिलेतारीफ है। मैं हेमा के लिए आइकॉन नहीं लेकिन वो मेरे लिए है।

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