कन्यादान

बेटी हूं मैं, कोई वस्तु नहीं
घर से विदा करो, पर दान नहीं
मेरा कन्यादान नहीं
बेशक सब कुछ दे दो, बेटों को
पर मेरे अस्तित्व का दान नहीं
मेरा कन्यादान नहीं ||
वस्तु बना कर जो दोगे दान
वो भी क्या करेगा मेरा सम्मान
मुझे स्वीकार नहीं ये अपमान
सब छोड़ जाऊंगी पर सम्मान नहीं
मेरा कन्यादान नहीं ||
मैं भी हृदय का टुकड़ा हूं
आपका रखती हूं खयाल
फिर ये भेदभाव क्यों
रहने दो अपनी बगिया का फूल हमें
न चढ़ाओ किसी देव को हमें
हमें ये स्वीकार नहीं
मेरा कन्यादान नहीं ||
बेशक रीति-रिवाज, परंपराएं
चली आ रही हों
तोड़ दो इनको, जो बेटियों को
छली जा रही हों
प्रेम, आशिर्वाद और साथ दो हमको
वस्तु नहीं, सम्मान दो हमको
पूरा परिवार, महक जाएगा
रोशन ये जीवन हो जाएगा
और कोई फरियाद नहीं
मेरा कन्यादान नहीं
मेरा कन्यादान नहीं ||
-वंदना मौर्या, इंदौर

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