मुख्यपृष्ठसमाज-संस्कृतिउत्तराखंड की यादों से जोड़ा गया 'कौथिग'

उत्तराखंड की यादों से जोड़ा गया ‘कौथिग’

सामना संवाददाता / नई मुंबई

‘कौथिग’ में उत्तराखंड के गीत-संगीत पर थिरकते सैकड़ों प्रवासी अपने खेत-खलिहान की यादों से जुड़ गए। इस जुड़ाव के साथ ही मां नंदा देवी की कृपा से देश की आर्थिक राजधानी से जुड़े नई मुंबई में 10 दिवसीय महोत्सव संपन्न हो गया।
मेले में उत्तराखंड से अतिथि के रूप में पधारे प्रमुख मेहमानों ने कहा कि प्रवास में रह रहे प्रवासी उत्तराखंडियों को अपने खेत-खलिहानों की सुध भी लेनी चाहिए और अपनी जड़ों से जुड़े रहाना चाहिए। लोकगीत-संगीत की तरोताजा बयार और जैविक उत्पादों की खरीदरी के बीच सैकड़ों प्रवासियों की उपस्थिति ने ‘कौथिग’ में खुशनुमा रंग भर दिए। वर्ष-2008 से शुरू हुआ ‘कौथिग’ का काफिला अपने 16वें वर्ष के मुकाम पर था और ठाणे-वाशी-नेरुल होता हुआ इस वर्ष सानपाड़ा में आयोजित था।
उत्तराखंड सरकार के सहयोग और सरकार के प्रमुख विभाग ‘उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद’ की सक्रिय भागीदारी से आयोजित इस मेले में उत्तराखंड की प्रमुख लोक विधा ‘ऐपण’ ने प्रवासियों को अपनी संस्कृति और रीति-रिवाजों की ओर अत्कृष्ट किया। ‘ऐपण’ के प्रमुख कलाकार शमशाद पिथौरागढ़ी की कलाकृतियों ने लोगों का मन मोह लिया। कैनवास पर और बर्तनों पर उकेरी गई कलाकृतियों ने ‘कौथिग’ प्रांगण को अलग ही रंग में रंग दिया।
इसके अलावा उत्तराखंड से आए चित्रकारी के प्रमुख हस्ताक्षर मुकुल बडोनी की उपस्थिति भी ‘कौथिग’ को नए रंग में रंग गई। मुकुल बडोनी गांव-घर के मकानों की दीवारों पर खूबसूरत पेटिंग रचने के लिए विख्यात हैं। खास तौर पर खंडहर हो गए मकानों में अपनी सजीव चित्रकारी से जान भर देते हैं। ठेठ गांव की पृष्ठभूमि पर रचित उनके चित्र बेहद दर्शनीय होते हैं। ‘कौथिग’ प्रांगण में भी उनकी कूची ने ग्रामीण परिवेश उकेर कर जान भर दी।
उत्तराखंड से आए एरियल फोटोग्राफी के ख्यातनाम फोटोग्राफर भूमेश भारती और पक्षियों की फोटोग्राफी के लिए मशहूर राजू पुसोला की फोटो प्रदर्शनी देखने लोगों की भारी भीड़ उमड़ी। इसमें जन-जीवन फोटोग्राफी के लिए चर्चित फोटोग्राफर मुकेश खुगसाल भी कनाडा से पधारे थे। इन सबके बीच लोक नृत्य कला, जिसके बिना हर उत्तराखंडी कार्यक्रम अधूरा है, छोलिया का दल भी दिग्गज गायक प्रकाश रावत के नेतृत्व में ‘कौथिग’ में पहुंचा था, जिनके बहुरंगी परिधान और खास नृत्य शैली ने प्रवासियों को मंत्रमुग्ध कर दिया। छोलिया नृतक उत्तराखंड की खास पहचान हैं। इन्हीं के साथ जौनसार-रवाई घाटी के नृत्य दल और गायकों ने भी इस क्षेत्र की संस्कृति को प्रतिबिंबित किया। यहां के खास किस्म के परिधान और नृत्य शैली उत्तराखंड के परिवेश की अलग पहचान गढ़ती हैं। इन दलों की प्रस्तुतियों ने गढ़वाल-कुमाऊं और जौनसार में ‘100 कोस पर बदलती बोली-भाषा’ वाली कहावत को एक सूत्र में पिरो दिया।
उत्तराखंड के जैविक उत्पाद बोर्ड और उद्योग विभाग की प्रदर्शनी में भी विभिन्न रोगों में कारगर जड़ी-बूटियों की खरीददारी के लिए भी लोगों की भारी भीड़ रही। डायबिटीज, ब्लड प्रेशर व अन्य रोगों में काम आनेवाले जैविक उत्पादों के प्रति लोगों का अधिक रुझान रहा। ‘उत्तरांचली कृषक ऑर्गेनिक’ ने प्रवासियों और गैर प्रवासियों को उत्तराखंड के विभिन्न उत्पादों से अवगत कराया और उन्हें उनकी आवश्यक खरीदरी के प्रति जागरूक किया। कौथिग’ ने लोक कला व जैविक उत्पादों के मार्फत मुंबई-नई मुंबई के संपूर्ण परिवेश को एक सूत्र में जोड़ दिया।
मेले में उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल, विधायक मुन्नासिंह चौहान व पूर्व कैबिनेट मंत्री हरकसिंह रावत की उपस्थिति खास रही। तीनों अतिथिगण का इस बात पर खास जोर था कि अपनी जड़ों से जुड़े रहें और साल में एकाध बार गांव जाकर अपने रीति-रिवाज और अपने संस्कारों को सींचते रहें। उत्तराखंड के सेतु आयोग के उपाध्यक्ष राजशेखर जोशी ने भी इन्हीं बातों पर जोर दिया।
प्रसिद्ध गायक मीना राणा, संजय कुमोला, किशन महिपाल, संगीता ढौंढियाल, वी कैश, मनोज आर्य, विनोद नौटियाल, मंजू नौटियाल व राकेश खनवाल के लोकप्रिय गीतों पर लोग जम कर थिरके। इसके अलावा हेमा नेगी करासी के लोकप्रिय विधा जागर पर लोग झूमते रहे। साथ ही विभिन्न विधा के कद्दावर शख्सियतों ने भी मेले शिरकत की।
मनोरजंन और लोककला एवं जैविक उत्पादों के इस वृहद समागम में उत्तराखंडी ही नहीं, विभिन्न राज्यों के लोगों ने भी जमा कर लुत्फ लिया, यही का ‘कौथिग’ हासिल रहा। कौथिक के संयोजक केशर सिंह बिष्ट कहते हैं कि हम सब जानते हैं कि मुंबई जैसे बड़े शहर में सांसों पर हमारा बस नहीं। बेहतर जीवन जीने की अभिलाषा में बुरी तरह भाग रहे हैं। हांफ रहे हैं और इसी क्रम में निजी जीवन दांव पर लगा हुआ है। अपनों से मिलने का वक्त नहीं। भावनाएं साझा करने का वक्त नहीं। ऐसे तंग माहौल में कौथिग हजारों दिलों का सुकूं बन कर उभरा है। अपनों के मेल-मिलाप का जरिया बना है। भावनाओं का सशक्त मंच बना है। यही कौथिग का हासिल है। इसी बात का गहरा सुकूं है!
‘मैं रोया नहीं उसे बिछुड़ने के बाद,
बस! आवाज थोड़ी भारी हो गई।

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