कविता श्रीवास्तव
लोकतंत्र में पक्ष भी रहेगा और विपक्ष भी रहेगा। यही लोकतंत्र का तकाजा है। लोकतांत्रिक सत्ता में विरोध झेलने का सामर्थ्य रखना भी बहुत बड़ी चुनौती है। इसके लिए बड़े साहस और सकारात्मक सोच की जरूरत होती है। विपक्ष केवल विरोध के लिए नहीं होता है। वह जनता की आवाज होता है। वह गलतियों की ओर उंगली दिखाने वाला पक्ष होता है। वह सत्ता पक्ष को सचेत करता है। उसे दरकिनार करना या महत्वहीन बताने की कोशिश करना लोकतंत्र को ही अस्वीकार करने जैसा है। सत्ता पा लेना उपलब्धि से ज्यादा जिम्मेदारी का काम है। यह आम जनता की ड्यूटी करने का आदेश है, यह जनादेश है। जिसे अधिक मत मिलता है, वह सत्ता में रहता है। जिसे कम मिलते हैं, वह सत्ता के सामने विपक्ष में रहता है। वह भी जनता की आवाज है। उसका अपमान करना जनता के एक वर्ग का अपमान जैसा ही समझा जाना चाहिए। हमने देखा कि सरकार बनाने के अपने तीसरे टर्म को शुरू करने से पहले नरेंद्र मोदी एनडीए के नेता चुने गए। एनडीए के निर्वाचित सांसदों की पहली बैठक को उन्होंने संबोधित किया। संसद के सेंट्रल हॉल में उन्होंने सबसे पहले `इंडिया’ गठबंधन और विरोधी दलों को निशाने पर लिया। कांग्रेस पर उन्होंने जमकर अपना क्रोध उतारा। उन्होंने यह जता दिया कि विरोधी दलों के प्रति उनके भीतर चुनाव में और उससे पहले भी रही द्वेष और क्रोध की भावना अभी भी कायम है और यह आगे भी कायम रहेगी यही संकेत मिला। ये अलग बात है कि संविधान बचाने के विपक्ष के मुद्दे का इतना ज्यादा असर हुआ कि इस बैठक से पहले उन्होंने देश के संविधान की प्रति को माथे से लगाया, फिर वे युवाओं, महिलाओं पर बोले। इस बार के चुनावों में मध्यमवर्गीय मतदाताओं के वोटों ने ही विपक्ष का ग्राफ बढ़ाया और सत्ता पक्ष का ग्राफ कुछ नीचे उतार दिया। तभी तो चार सौ की बात छोड़िए, एनडीए तीन सौ भी पार नहीं कर पाया। मध्यम वर्ग की नाराजगी को भांपकर दस साल बाद पहली बार नरेंद्र मोदी ने इस वर्ग पर ध्यान देने की बात कही। यही मध्यम वर्ग देश का सर्वाधिक प्रभावित वर्ग है, जो सीमित आय पर भी टैक्स भरता है, फिर हर चीज खरीदारी पर टैक्स चुकाता है। कोई सरकारी सुविधा मुफ्त नहीं लेता है, जबकि अस्सी करोड़ जनता मुफ्त अनाज पाती है। इस वर्ग के टैक्स से देश का राजस्व बढ़ता है। विपक्ष गरीबों के साथ इसी मध्यम वर्ग के मुद्दे लगातार उठाता रहा है। महंगाई, बेरोजगारी जैसी बड़ी समस्या इसी मध्यम वर्ग की समस्या है। इन समस्याओं पर हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने कुछ नहीं कहा है। अब विपक्ष अपनी बढ़ी हुई ताकत के साथ लोकसभा में यह आवाज अवश्य ही उठाएगा। विपक्ष की बात पर क्रोध और द्वेष नहीं, सुनवाई और विचार करना होगा।
कबीरदासजी ने कहा है…
निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।।