दीपक तिवारी / विदिशा
आयुर्वेदिक भस्मों और उत्तराखंड की महंगी दुर्लभ जड़ी बूटियों के नाम पर जटिल रोगों का गारंटी से इलाज का दावा कर शहर के लोगों की खून-पसीने की कमाई के लाखों रुपए लेकर गायब होने वाले फर्जी वैद्य के खिलाफ जिला आयुष विभाग पांच माह बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर सका है। विभाग की लापरवाही और उदासीनता का आलम यह है कि शिकायतकर्ता को ही जांच रिपोर्ट देने में आनाकानी जिला आयुष अधिकारी कर रहे हैं, जिसके चलते शिकायतकर्ता को संभागीय आयुष अधिकारी के समक्ष गुहार लगाना पड़ी।
पत्रकार दीपक तिवारी ने जुलाई 2024 में जिला आयुष अधिकारी को प्रमाण सहित एक फर्जी वैद्य की शिकायत कर उस पर कड़ी कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन जिला आयुष अधिकारी की उदासीनता की वजह से जांच आज तक ठंडे बस्ते में पड़ी है। हालत है कि शिकायतकर्ता को अपनी ही शिकायत में आयुष विभाग से जांच प्रतिवेदन लेने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम का सहारा लेना पड़ा। उसके बावजूद जिला आयुष अधिकारी ने जांच प्रतिवेदन उपलब्ध नहीं कराया। ऐसे में जिला आयुष अधिकारी से फर्जी वैद्य के विरुद्ध कार्रवाई की उम्मीद करना बेमानी है। अब दीपक तिवारी ने मामले की प्रथम अपील संभागीय आयुष अधिकारी के समक्ष की है, जिसकी सुनवाई 27 दिसंबर को है।
ये हैं लुटेरे फर्जी वैद्य की गंभीर शिकायत
जिला आयुष अधिकारी को की गई शिकायत में बताया गया कि आयुर्वेद के नाम पर जटिल रोगों का जड़ से इलाज करने की गारंटी देने वाले बाहर के कई अयोग्य वैद्य विदिशा जिले में सक्रिय हैं, जो गंभीर रोगों से पीड़ित मरीजों को अपने जाल में फंसाकर उनसे मोटी रकम वसूल करते हैं और रफूचक्कर हो जाते हैं।
ऐसे ही एक तथाकथित वैद्य शेर सिंह ने शहर के महेंद्र कुमार सुंदरलाल जैन मेडिकल स्टोर के साथ मिलकर लोगों को लाखों का चूना लगाया है। शिकायत में बताया गया कि फर्जी वैद्य शेर सिंह पहाड़ी द्वारा शहर के कई मरीजों को उक्त मेडिकल स्टोर से महंगी औषधियां लाने भेजा गया और उनसे कोई लाभ नहीं हुआ, बल्कि भस्मों से कई मरीजों को नुकसान हुआ।
जांच के नाम पर केवल खानापूर्ति
जिला आयुष अधिकारी डॉ दिनेश अहिरवार ने 5 महीने में फर्जी वैद्य के खिलाफ जांच के नाम पर जांच टीम बनाकर केवल खानापूर्ति की है। जांच टीम को मेडिकल स्टोर संचालक ने कोई सहयोग नहीं दिया, जबकि उसके द्वारा शिकायतकर्ता को बहुत महंगी आयुर्वेदिक दवाइयों के जो बिल बना कर दिए हैं, उनमें ना तो चिकित्सक का नाम लिखा है और न दवाइयों की निर्माण तिथि और बैच नंबर का उल्लेख किया है। सवाल इस बात का है कि जब मेडिकल स्टोर संचालक ने जांच में सहयोग नहीं किया तो आयुष विभाग ने पुलिस को पत्र क्यों नहीं लिखा? आयुष विभाग की उदासीनता के कारण ही आयुर्वेदिक इलाज के नाम पर लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ होने के साथ उनकी गाड़ी कमाई पर डाका डाला जा रहा है।
बीएएमएस डॉक्टरों की नहीं है सूची
जिला आयुष विभाग के पास विदिशा जिले में रजिस्टर्ड आयुर्वेदिक चिकित्सकों के साथ होम्योपैथी और यूनानी डॉक्टरों की सूची नहीं है। आयुष विभाग के पास बीएएमएस चिकित्सकों की सूची ना होना आश्चर्य का विषय है? जबकि आयुष विभाग के पास आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक और यूनानी डॉक्टरों की सूची अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। आयुष अधिकारी झोलाछाप डॉक्टरों की जांच किस आधार पर करते होंगे? यह समझ से परे है। जबकि शासन द्वारा झोलाछाप डॉक्टरों की जांच के लिए सीएमएचओ के नेतृत्व में बनी समिति में जिला आयुष अधिकारी को भी शामिल किया गया है। जिला आयुष अधिकारी द्वारा कभी भी झोलाछाप डॉक्टरों और घूमकर जड़ी बूटियों से इलाज करने वाले कथित वैद्यों की जांच नहीं की जाती, जबकि जिला अधिकारी समेत आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारियों को शासन से हर माह लाखों रुपए वेतन और अन्य सुविधाएं मिलती हैं।