सामना संवाददाता/विदिशा
खेड़ा या खेरा, हर गांव बस्ती नगर के बाहरी हिस्से को कहा जाता है और इस ग्रामीण या शहरी आबादी की रक्षक होती हैं, खेड़ापति मां। हर गांव में हम देखते हैं कि गांव के बाहरी हिस्से की तरफ खेड़ापति या खेरे वारी दुर्गा मैया का चबूतरा जरूर होता है। अब कई गांवों में चबूतरे के स्थान पर मन्दिर या मड़िया जैसे आर्थिक हालात हों उसी अनुसार बना दिये गए हैं। हर गांव, हर बस्ती में मेढे के हनुमानजी, हरदौल जु को चौतरा जरूर मिलेगा। उसी तरह कम से कम एक मन्दिर या मड़िया या चौतरा दुर्गा मैया का जरूर मिलेगा।
इसी तरह विदिशा में भी किले के अंदर बसे हुए शहर के बाहर खेरे में खेड़ापति मैया का पहले चबूतरा बाद में मड़िया बनी होगी। विदिशा के पूर्वी छोर पर रेल्वे स्टेशन तरफ से उत्तर की ओर खरीफाटक रोड पर स्थित है खेड़ा पति माता का मंदिर है। पहले एक छोटी सी मड़िया में विराजी थी मातारानी। एक छोटा तालाब, जिसे स्थानीय बोलचाल में तलैया कहा जाता है। ऐसी ही एक तलैया थी उसी के किनारे मड़िया में स्थापित थी प्राचीन मूर्तियां।
इतिहासकार गोविंद देवलिया बताते हैं कि ये प्राचीन मूर्तिया आज भी मन्दिर परिसर में रखी हुई हैं, साथ ही खत्री परिवार और अन्य स्थानीय लोगों के सहयोग से निर्मित नवीन मूर्ति नवीन संगमरमर की मूर्ति की स्थापना 1977,78 सम्वत 2034, 35 में की गई है।मड़िया के समीप ही रहने वाले भगवान दास त्रिपाठी को जो, मातारानी के भक्त थे। रोज पूजन करते थे, को स्वप्न में मैया ने कहा कि मुझे मन्दिर में स्थापित करो।
स्वप्न की बात याद कर त्रिपाठी जी अपने परिचित मुरैना चाट भंडार वाले परशुराम शर्मा के पास गए। उन्होंने स्वयं भी सहयोग देना स्वीकार किया एवं उनकी दुकान के सामने रहने वाले गोल्डन फोटो स्टूडियो वाले खत्री परिवार के मुखिया चंद्रप्रकाश से चर्चा की। खत्री जी के पुत्र की तबियत ठीक नहीं रहती थी। उन्होंने कहा कि मैया ने स्वयं कृपा की है जो भी सम्भव होगा ,मैं सहयोग करूंगा, बस अब किसी से कुछ चंदा नहीं मांगना। आप दोनों जयपुर जाइए तथा मातारानी की मूर्ति ले आइये। इस तरह नवीन भव्य मूर्ति आ गई। मन्दिर के निर्माण के समय भी खत्री जी ने यही कहा कि चंदा किसी से नहीं मांगना। कोई मन से दे जाए तो बात अलग है। बस इसी तरह मन्दिर निर्माण होने लगा, आज भव्य मंदिर में विराजित हैं मातारानी। आज भी पूजन, सेवा सब कार्य खत्री परिवार के ही सदस्य करते हैं।
विवाह आदि मांगलिक कार्यो में सर्वप्रथम होती है इसी मन्दिर में पूजन। नगर के विशेष कर माधवगंज किरी मोहल्ला, लोहांगी पुरा, पीतल मिल चौराहा, हॉस्पिटल रोड, गल्लामंडी एरिया आदि में आज भी खेडापति माता के दर्शनों के बाद ही मांगलिक कार्य प्रारंभ किए जाते हैं। विवाह के अवसर पर लड़का/लड़की की माता अन्य परिवार जनों, मोहल्लों के लोगों के साथ साष्टांग करते हुए अर्थात सरें भरते हुए अपने घर से मन्दिर तक जाकर मातारानी से कुशल क्षेम की प्रार्थना करती हैं।मातारानी उन्हें निराश भी नही करती। नगर के मध्य में स्थित इस मंदिर की मान्यता बहुत है।