कृष्ण प्रेम

घनघोर घटाएं उमड़ पड़े, सबके मन चंचल डोल पड़े
स्वर्ण भुवन सा आंगन हो, जिसमें मोहन के पैर चले।।
कोमल पैरों में घुंघरू से सबके हृदय में प्रेम जगे
बंसी की घुन को सुनते ही, सबके अंतर्मन झूम उठे।।
वृंदावन के कण कण में, गोपियों के संग श्याम बसे
राधा के मनमंदिर में, मुरली की ही तान बजे।।
पैरों की छन छन से, पनघट की जो सान सजे,
देख, यशोदा मइया के चहरे पे जो मुस्कान रचे।।
श्याम दिवानी होकर मीरा ने सुख श्रृंगार है छोड़ा,
सूर की लिखित रचना ने, सबके चित को मोहन से जोड़ा।।
श्याम सलोने हैं इस मन में, मोहन ही बसते हैं तन में,
मोहन मोहन मीरा गाए, मोहन की माला ओ फेरे।।
सृष्टि जिसके मुखमंडल में, ओ हैं गोकुल के भूतल में,
धन्य हुआ ये जीवन मेरा, प्रभु की छाया मेरे मन में।।
-वर्षा मौर्या
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

अन्य समाचार