धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
महाराष्ट्र में कानून व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ चुकी है, इसमें बीड का मामला काफी समय से सुर्खियों में है। इसमें मंत्री धनंजय मुंडे को अपने पद से इस्तीफा तक देना पड़ा है। कुल मिलाकर अपराधियों में शासन, प्रशासन और पुलिस बल का भय पूरी तरह से खत्म हो चुका है।
आलम यह है कि मंत्रालय और मंत्रियों के सरकारी आवासों में बिना रोक-टोक के आपराधिक पृष्ठभूमि वालों को एंट्री मिल रही है। इसे लेकर विपक्षी दलों के नेता लगातार महायुति सरकार पर हमलों की बौछार कर रहे हैं। इसके साथ ही विपक्ष पहले से ही कहते आ रहा है कि राज्य में दंगे भड़काने की कोशिश की जा रही है। यह संभावना सच साबित हुई और हाल ही नागपुर में दंगा भड़क उठा। इसमें दंगाइयों ने न केवल संपत्तियों को क्षति पहुंचाई और आगजनी की, बल्कि पुलिस अधिकारियों पर भी हमले किए। इतना ही नहीं, महिला पुलिसकर्मी से छेड़छाड़ भी किए गए। इस घटना ने महायुति सरकार पर कालिख पोतने का काम किया है।
हिंसा रोकने में फेल रही सरकार
समर्थन बजटीय अध्ययन केंद्र द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र में अब तक दंगा के कुल ८,२१८ मामले दर्ज किए गए। इसके साथ ही दंगा के मामलों में महाराष्ट्र पहले पायदान पर पहुंच गया है। इसके बाद बिहार में ४,७३६, उत्तर प्रदेश में ४,४७८, कर्नाटक में ४,१५२ और हरियाणा में २,३७३ दंगा के मामले भड़के हैं। हिंसा के मामले में महाराष्ट्र के देश में पहले स्थान पर आने से महायुति सरकार के गृह विभाग पर उंगलियां उठने लगी हैं। साथ ही इससे यह स्पष्ट हो गया है कि यह सरकार हिंसा रोकने में फेल हो रही है।
पुलिस का बढ़ रहा तनाव
हिंसा और अन्य अपराधों को रोकने की जिम्मेदारी पुलिस पर होती है। हालांकि, राज्य की कुल आबादी १२.८३ करोड़ है। इस आबादी की सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य के महज एक लाख ९८ हजार ८७० पुलिस वालों के कंधों पर है। इस तरह एक लाख जनसंख्या के पीछे १७२ पुलिसवाले कार्यरत हैं। वहीं महिला पुलिसकर्मियों की संख्या ३६,००९ है, जो १८.११ फीसदी है। इससे पुलिसवालों पर तनाव बढ़ रहा है।
बजट में पुलिस विभाग की हुई अनदेखी
महाराष्ट्र में लाडली बहन योजना महायुति सरकार के गले की फांस बन गई है। आलम यह है कि सरकारी तिजोरी खाली हो चुकी है। इस वजह से सभी विभागों पर इसका असर पड़ रहा है। इससे आम जनता की सुरक्षा करनेवाला पुलिस विभाग भी नहीं बच सका है। महायुति सरकार के हर बजट में पेश पुलिस विभाग को १०० रुपए में से केवल साढ़े पांच रुपए ही मिले हैं। बताया गया है कि पिछले सात सालों में गृह विभाग में औसतन २० हजार ९८५ करोड़ रुपए खर्च हुए हैं।