सामना संवाददाता / मुंबई
जब दिसंबर में पुलिस आयुक्त की अध्यक्षता में एक आंतरिक बैठक के दौरान घाटकोपर और नेहरूनगर में पुलिस क्वॉर्टरों की मरम्मत और रख-रखाव की तत्काल आवश्यकता पर विचार किया गया तो इन कॉलोनियों में रहनेवाले परिवारों को उम्मीद थी कि उनकी परेशानियां जल्द ही कम हो जाएंगी, लेकिन लगभग तीन महीने बाद कॉलोनियों में पानी का रिसाव, खराब लिफ्ट और दीवारों से पेंट उखड़ने जैसी समस्याएं बदतर हो गई हैं, उनके रख-रखाव का काम करनेवाली विभिन्न एजेंसियां जिम्मेदारी संभालने में बहुत व्यस्त लगती हैं।
नेहरूनगर पुलिस कॉलोनी की निवासी वैशाली आव्हाड, जिसमें ४० फ्लैटवाली १९ इमारतें हैं, उन्होंने बताया कि पूरी इमारत लीक हो रही है और हर एक फ्लैट में पानी घुस रहा है। कॉलोनी में लगभग ७५० परिवार रहते हैं, जिसे ५० साल से अधिक पहले म्हाडा ने बनाया था और महाराष्ट्र पुलिस के आवास विभाग को सौंप दिया था। आव्हाड की इमारत से सटी तीन अन्य इमारतों में भी यही रिसाव की समस्या है, जो बाहरी दीवारों पर दोबारा प्लास्टर किए जाने के बाद और भी बदतर हो गई है। ‘हमारे परिवार के सदस्य पुलिस विभाग में दिन-रात काम करते हैं, लेकिन जब वे घर आते हैं तो हमारे क्वॉर्टर की खराब हालत के कारण ठीक से सो भी नहीं पाते हैं। कॉलोनी की एक अन्य निवासी रेशमा करबल ने आव्हाड की बात दोहराते हुए कहा कि मानसून के दौरान क्वॉर्टरों से चौबीसों घंटे पानी टपकता है। ‘तब हमारे पास रसोई की छत के नीचे प्लास्टिक बांधने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। निवासियों ने कहा कि दीवारों से पेंट का उतरना कॉलोनी में एक और बड़ी समस्या थी और कई परिवारों ने राहत के लिए अपनी दीवारों को पूरी तरह से स्टिकर से ढंक दिया है। घाटकोपर-पश्चिम में पुलिस कॉलोनी की हालत भी कोई बेहतर नहीं है। परिसर के अंदर बड़ी संख्या में लावारिस खटारा कारें पड़ी हुई थीं, जिन्हें कई शिकायतों के बावजूद हटाया नहीं गया। पुलिस कॉलोनी परिवार में रहनेवाले आवश्यक मरम्मत पर अपनी जेब से खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ा, वहीं मिली जानकारी के अनुसार, मरम्मत का काम पांच महीने पहले शुरू हुआ था, लेकिन अब तक शायद ही कुछ काम हो पाया है। वे एक या दो दिन के लिए आते हैं, कुछ काम करते हैं और कई दिनों के लिए चले जाते हैं, ‘एक कांस्टेबल ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा।
कॉलोनियों में पर्याप्त रख-रखाव की कमी के बारे में पूछे जाने पर एक सहायक पुलिस आयुक्त ने कहा कि इसका ध्यान लोकनिर्माण विभाग द्वारा रखा गया है। ‘हम भवन निर्माण में विशेषज्ञ नहीं हैं, इसलिए हम लोकनिर्माण विभाग द्वारा की जानेवाली मरम्मत की गुणवत्ता के बारे में नहीं जान पाते। पीडब्ल्यूडी भी एक सरकारी विभाग है, इसलिए हम ज्यादा कुछ नहीं कह सकते,’ ऐसा अधिकारी ने कहा। संयुक्त पुलिस आयुक्त (प्रशासन) एस जयकुमार ने कहा, ‘पिछले साल मरम्मत पर ६० करोड़ रुपए से अधिक खर्च किए गए थे, लेकिन कई इमारतें पुरानी हैं इसलिए हमें इन मरम्मतों के लिए वित्त की योजना बनानी होगी।’ एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, जो पहले नेहरूनगर पुलिस स्टेशन से जुड़े थे। उन्होंने कहा, ‘सभी पुलिस कॉलोनियों में आवास समस्याओं की देखभाल के लिए सिर्फ एक पुलिस अधिकारी है।’ हालांकि, सबसे बड़ी समस्या आवास से संबंधित शिकायतों के लिए किसी निवारण तंत्र की कमी है।