– भाजपा का कुचक्र धराशायी
सामना संवाददाता / मुंबई
चुनाव आयोग ने कल महाराष्ट्र चुनाव की तारीख घोषित कर दी। आगामी २० नवंबर को मतदान और २३ नवंबर को रिजल्ट घोषित होगा। ऐसे में सबसे बुरी दशा उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की हुई है। वे इस विधानसभा के कार्यकाल में एक बार भी मुख्यमंत्री नहीं बन सके। यह मुख्यमंत्री का पद ही था, जिसके लिए उन्होंने शिवसेना के साथ वादा खिलाफी की थी और शिवसेना-भाजपा की युति टूट गई थी। अब चुनाव घोषित होने के बाद राजनीतिक गलियारों में लोग चुटकी लेते हुए कह रहे हैं, ‘आधी छोड़ पूरी को धावै, पूरी मिले न आधी पावे।’ न तो वे पूरे ५ साल के लिए मुख्यमंत्री बन पाए और युति तोड़ने के कारण न ही उन्हें ढाई साल का आधा कार्यकाल ही मिल पाया।
बता दें कि २०१९ के विधानसभा चुनाव के पहले फडणवीस के साथ खुद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ‘मातोश्री’ आए थे। तब तय हुआ था कि दोनों दलों के पास ढाई-ढाई साल के लिए सीएम पद रहेगा। रिजल्ट के बाद शिवसेनापक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे ने इस बात की याद भी दिलाई थी और कहा था कि वादे के अनुसार, ढाई साल भाजपा का मुख्यमंत्री रहे और ढाई साल शिवसेना का, पर फडणवीस राजी नहीं हुए थे। रिजल्ट आने के बाद उनके तेवर बदल चुके थे। वे ढाई-ढाई साल वाली बात भूलकर येन-केन प्रकारेण खुद ही मुख्यमंत्री बनने के लिए बेचैन हो उठे थे। इस वादाखिलाफी के बाद युति का कोई औचित्य नहीं रह गया था। इसके बाद जब महाविकास आघाड़ी की सरकार बनी तो भाजपा ने कुचक्र रचकर शिवसेना में फूट डलवाई और शिंदे को सीएम बनवा दिया। ऐसे में फडणवीस को मुख्यमंत्री बनने का सपना टूट गया और उन्हें मन मसोसकर उप मुख्यमंत्री का जूनियर पद संभालना पड़ा। राजनीतिक हलकों में इस बात की चर्चा है कि अब यहां जो राजनीतिक समीकरण बने हैं, उसमें फडणवीस के फिर से सीएम बनने की संभावना न के बराबर है। उन्हें दिल्ली बुलाकर पार्टी कोई और काम दे सकती है। ऐसे में मुख्यमंत्री बनने के लिए फडणवीस ने महाराष्ट्र में जो तोड़फोड़ की राजनीति की, उससे उन्हें कुछ भी हासिल नहीं हुआ।