डॉ. दीनदयाल मुरारका
बात उन दिनों की है जब लालबहादुर शास्त्री उत्तर प्रदेश के गृहमंत्री थे। इतने बड़े पद पर पहुंचकर भी वह निजी जिंदगी में बेहद सादगी के साथ रहते थे। किसी प्रकार के आधुनिक ऐशोआराम की उनमें तनिक भी लालसा नहीं थी। गृहमंत्री बनने के बाद वह अपने परिवार के साथ सरकारी बंगलों में आकर रहने लगे।
एक दिन सार्वजनिक निर्माण विभाग वालों ने उनके बंगले में कूलर लाकर लगा दिया। ऐसा करने से पहले उन्होंने न तो शास्त्री जी से पूछा और न ही उन्हें इसकी जानकारी दी। शास्त्री जी के परिवार वाले, घर में कूलर लगा देखकर बहुत खुश हो गए क्योंकि उन दिनों गर्मी का मौसम था और सब लोग गर्मी से परेशान थे। ऐसे में कूलर लगने से सबको चिलचिलाती गर्मी से राहत मिली।
दिनभर दफ्तर का काम निपटाने के बाद शाम को जब शास्त्री जी घर पहुंचे तो उन्हें घर पर सरकारी कूलर लगने की बात बताई गई। यह जानकर वह थोड़े गंभीर हो गए और घरवालों से बोले, ‘जरूरत पड़ने पर हम सबको धूप और लू में तो निकलना ही पड़ेगा और आगे चलकर हमें अपने इलाहाबाद के कटघरे वाले पुश्तैनी मकान में ही रहना पड़ सकता है। ऐसे में कूलर से सबकी आदत बिगड़ जाएगी।’ घरवाले उनकी बात सुनकर चुप हो गए। शास्त्री जी ने तुरंत सार्वजनिक निर्माण विभाग को फोन कर दिया कि मेरे घर में लगाया गया कूलर हटा दें। उनका आदेश था इसलिए अगले ही दिन उनके घर से कूलर हटा दिया गया। शास्त्री जी ने अपना पूरा जीवन बड़ी ही सादगी से जिया। अपने पद का कोई लाभ लेने की उन्होंने कभी कोई कोशिश नहीं की।