मुख्यपृष्ठस्तंभकिस्सों का सबक : सीखने की जिजीविषा

किस्सों का सबक : सीखने की जिजीविषा

डॉ. दीनदयाल मुरारका

न्यूयॉर्क की एक संकरी गली में हर्बर्ट नामक एक गरीब बच्चा रहता था। गरीबी के कारण १३ वर्ष की उम्र में उसने बर्फ की गाड़ी चलाने का काम किया। थोड़ा बड़ा होने पर उसको प्राइवेट रेलवे कंपनी में रोड़ी लादने का अस्थाई काम मिला। उसकी मेहनत और लगन देखकर उसे पक्की नौकरी पर रख लिया गया। उसे स्लीपरों की देखभाल का काम दिया गया। छोटा सा स्टेशन था। उसकी सभी लोगों से जान-पहचान हो गई। उसने लोगों से कहा, मैं काम पर रहूं या छुट्टी पर रहूं। आप मुझे काम पर कभी भी बुला सकते हैं। इस तरह वह अपने काम के अलावा दूसरे काम में भी मन लगाने लगा।
एक बार एक अधिकारी ने कहा, बेटा तुम इतनी मेहनत क्यों करते हो? तुम्हें फालतू काम का कोई पैसा नहीं मिलेगा। हर्बर्ट ने कहा, मैं कोई काम पैसे के लिए नहीं करता। मैं संतोष के लिए काम करता हूं। इससे मुझे ज्ञान मिलता है। एक बार उसकी नजर एक विज्ञापन पर पड़ी। न्यूयॉर्क की विशाल परिवहन व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए एक परिवहन व्यवस्थापक की जगह खाली थी। उसने भी अप्लाई कर दिया। उसे साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। इंटरव्यू लेनेवाला अफसर उस समय अवाक रह गया, जब उसे आभास हुआ कि हर्बर्ट की जानकारी उनसे भी ज्यादा है। एक अधिकारी ने इस संबंध में पूछा तो हर्बर्ट ने कहा, सर मैंने अपनी जिज्ञासा के कारण इतनी जानकारी प्राप्त की है। मैं हमेशा इस बात के लिए उत्सुक रहा कि कितनी जल्दी ज्यादा से ज्यादा ज्ञान प्राप्त कर लूं। मैंने किसी काम को कभी छोटा नहीं समझा। जिस व्यक्ति में काम करने की क्षमता और ईमानदारी होगी, उसके रास्ते में कोई बाधा नहीं आ सकती। कुछ समय बाद हर्बर्ट को न्यूयॉर्क के बेहद भीड़-भाड़ वाले रास्ते पर सबसे अच्छी यातायात व्यवस्था करने के लिए पुरस्कार प्रदान किया गया।

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