डॉ. दीनदयाल मुरारका
राष्ट्रपति बनने से पहले ही अब्राहम लिंकन पूरे अमेरिका में लोकप्रिय हो गए थे। अच्छा वक्ता होने के कारण उन्हें व्याख्यान के लिए देश के विभिन्न जगहों से निमंत्रण मिलते रहते थे। एक बार एक बड़े शहर में लिंकन का व्याख्यान चल रहा था। सभागार खचाखच भरा हुआ था। संयोग से श्रोताओं के बीच लिंकन के गांव का एक गरीब किसान भी बैठा था। सभा समाप्त होते ही किसान मंच पर जा चढ़ा। सभागार के लोग उसे आश्चर्य से देखने लगे। उसने मंच पर पहुंचकर लिंकन के कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘अरे अब्राहम, तू तो बड़ा आदमी बन गया रे। तुझे सुनने के लिए पूरा शहर ही उमड़ पड़ा है। शाबाश, तूने तो पूरे गांव का नाम रोशन कर दिया।’
तभी आयोजकों की नजर उस किसान पर पड़ी। वे समझ नहीं पाए कि यह कौन है और मंच पर कैसे चढ़ गया? वह उसे मंच से उतारने के लिए आगे बढ़े। तभी लिंकन ने किसान का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, ‘अरे, आप यहां। यह तो मेरा सौभाग्य है कि आप मेरा व्याख्यान सुनने आए और गांव में सब ठीक है न?’
फिर लिंकन उसे कोने में ले गए और उससे अपने गांव के लोगों के बारे में विस्तार से पूछने लगे। लिंकन से मिलने की चाह रखनेवाले कई लोग खड़े होकर बातचीत खत्म होने का इंतजार करते रहे। किसान ने लौटते हुए कहा, ‘तुमने मुझे जो सम्मान दिया वह मेरे लिए जीवन की अनमोल निधि बन गया है।’ फिर लिंकन उसे बाहर तक छोड़ने आए। लोगों ने लिंकन की सहजता और उदारता की बहुत प्रशंसा की।