दर्पण में अपने को न पहचानो तो
दर्पण को न तोड़ो, आगे से हट जाओ,
क्योंकि दर्पण झूठ नहीं बोलता
सच बताना इसकी आदत है।
किसी सिद्धांत के साथ नहीं चल सकते तो
आंको, तुम या सिद्धांत किसे बदलना होगा
तुम्हारे बदलने से उलटी बहती गंगा सीधी बहने लगे तो
गंवाओ न समय अपने रंग ढंग बदल डालो।
सहेजें हें स्मृति पटल पर जो मीठे क्षण, उन पर
संशय करो न,
मोह प्रवृतियांअसीम हैं
हौले से उन्हें झकझोरो
कुछ अनुचित न कर जाओ कहीं।
मौन एक समाधी है, सुनाई देता है अनहत नाद
इसी नाद में आत्मा बोलती है
खोलती है सभी बंद द्वार,
सुरभित रुह बसती है इसी शरीर में।
हो सकता है सांझा करने की न हो कोई बात
न बुलवाओ, न खुलवाओ जिन्हें सुन कर
कष्ट तुम्हें होगा, कष्ट मुझे भी होगा।
जितने दिनों का जीने का रुक्का मिला है
आराम से जियो, औरों को जीने दो।
-बेला विरदी