जीवन ही संघर्ष

चलता है व्यक्ति विजय पथ की ओर
जीवन में करके संग्राम
संघर्षी देता है यह पैगाम
शूरवीरता का है यही श्रृंगार
विजेता पाने को श्रम की
कसरत करते हैं सुबह-शाम
कुछ रत्न पाते हैं कुछ पाते हैं पतन
पर प्रयत्न करना है उनका काम
उठते-गिरते चलते-झुकते
बस पीते अपने लक्ष्य का ही जाम
मंजिल कितनी दूर है
क्यूं इतना क्रूर है इंसान
करता अपने को मजबूत है
जोशीले पग चलते हैं पथरीले पथ पे
मुकाम नजर आ ही जाता है
जब शिकस्त दे फतेह हासिल कर
जीत की प्रसन्नचित से लेता है
परमवीरता का इनाम
सूझ-बूझ विचारधारा से जोड़ता है
वो अपने कण-कण का भाग
नजर आती है उसको दूर दृष्टि
तैयार करता है अपना अगला झंडा
जिससे मिलता है उसको
एक नए मोर्चे का निशान।
-अन्नपूर्णा कौल, नोएडा

अन्य समाचार