जिंदगी धूप है छांव है
जून की तपती गर्मी है
तो कभी सावन की मीठी बौछार है।
गिरना उठना, गिर कर फिर संभालना
यही तो जीवनकी धार है।
नफरतों की दीवारों को तोड़ कर
बांधो सबको इक डोर में
यही तो सच्चा प्यार है।
दुख और सुख
दिए हैं उसने जो
चलाता है इस संसार है को।
जो बीत गया उसे भूल जाओ
जो आने वाला है उसे अपनाओ
यही तो विधि का व्यवहार है।
कर्म करो फल की चिंता छोड़ दो
यही तो गीता का सार है।
-दीपशिखा श्रीवास्तव