मुख्यपृष्ठस्तंभसाहित्य शलाका : भावुक और विचारक निबंधकार अध्यापक पूर्ण सिंह

साहित्य शलाका : भावुक और विचारक निबंधकार अध्यापक पूर्ण सिंह

डॉ. दयानंद तिवारी

अध्यापक पूर्ण सिंह इस युग के सबसे प्रमुख, भावुक और विचारक निबंधकार हैं। इससे अधिक गौरव की बात और क्या होगी कि इन्होंने केवल छह निबंध लिखे और फिर भी अपने समय के श्रेष्ठ लेखक माने गए। उनमें से प्रमुख हैं ‘मजदूरी और प्रेम’, ‘आचरण की सभ्यता’ और ‘सच्ची वीरता’। अध्यापक जी के निबंधों में प्रेरणा देने वाले नए-नए विचार हैं। इनकी भाषा बड़ी ही शक्तिशाली है। उसमें एक खास बांकपन है, जिससे भाव का प्रकाशन भी निराले ढंग से होता है। विषय भी ऐसे नए कि अब तक किसी को सूझे ही नहीं। साथ ही इनमें भावुकता का माधुर्य भरा है। वीरता, आचरण, शारीरिक परिश्रम का जो महत्व उन्होंने समझाया, उसको ठीक समझा जाए तो आज धर्म का नया रूप सामने आ जाए। समाज में क्रांति हो जाए, मनुष्य और सारा देश उन्नति के शिखर पर पहुंच जाए। ‘जब तक जीवन के अरण्य में पादरी, मौलवी, पंडित और साधु-संन्यासी, हल कुदाल और खुरपा लेकर मजदूरी न करेंगे तब तक उनका आलस्य जाने का नहीं।’
‘मजदूरी और प्रेम’ का यह उद्धरण कितना महान संदेश देता है। भाषा की लाक्षणिकता इनकी विशेषता है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी भी स्वतंत्र विचारों के लिए प्रसिद्ध हैं। निबंध इन्होंने भी थोड़े ही लिखे। इनकी रचनाओं में भी जीवन को उठाने की प्रेरणा और नए विचारों का खजाना मिलता है। संस्कृत के महापंडित होते हुए भी पुरानी लकीर पीटने वाले ये नहीं थे। प्राचीन धार्मिक कथाओं की ये वैज्ञानिक और बुद्धसम्मत व्याख्या करते थे। ‘कछुआ धर्म’ नामक निबंध भी गंभीर तर्कपूर्ण, प्रभावशाली, विचार-प्रधान शैली इनकी विद्वता और तर्क-कुशलता का सुंदर उदाहरण है। पूर्ण सिंह का जन्म १७ फरवरी सन् १८८१ को पश्चिम सीमाप्रांत (अब पाकिस्तान में) के हजारा जिले के मुख्य नगर एबटाबाद के समीप सलहद ग्राम में हुआ था। इनके पिता सरदार करतार सिंह भागर सरकारी कर्मचारी थे। उनके पूर्वज जिला रावलपिंडी की कहूटा तहसील के ग्राम डेरा खालसा में रहते थे। रावलपिंडी जिले का यह भाग अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिये प्रसिद्ध है। पूर्ण सिंह अपने माता-पिता के ज्येष्ठ पुत्र थे। कानूनगो होने से पिता को सरकारी कार्य से अपनी तहसील में प्राय: घूमते रहना पड़ता था, अत: बच्चों की देखरेख का कार्य प्राय: माता को ही करना पड़ता था। सरदार पूर्ण सिंह को अध्यापक पूर्ण सिंह के नाम से भी जाना जाता है। वे द्विवेदी युग के श्रेष्ठ निबंधकारों में से एक हैं। आवेगपूर्ण, व्यक्तिव्यंजक लाक्षणिक शैली उनकी विशेषता है। विशेष प्रतिपादन की दृष्टि से उन्होंने भावुकता प्रधान शैली का विशेष प्रयोग किया है। सरदार पूर्ण सिंह के निबंधों की विषय-वस्तु समाज, धर्म, विज्ञान, मनोविज्ञान तथा साहित्य रही है। ‘सच्ची वीरता’ में उन्होंने सच्चे वीरों के लक्षण एवं विशेषताओं का भावात्मक एवं काव्यात्मक वर्णन किया है। ‘मजदूरी और प्रेम’ में उन्होंने दोनों के संबंधों का विचारात्मक एवं उद्धरण शैली में वर्णन किया है। ‘आचरण की सभ्यता’ में देश, काल एवं जाति के लिए आचरण की सभ्यता का महत्त्व बताया है। अपने जीवन मूल्यों को आचरण में उतारकर श्रेष्ठ बनना ही आचरण की सभ्यता है। प्राय: श्रमिक-से दिखने वाले लोगों में आचरण की सभ्यता होती है। उनके निबंधों की भाषा उर्दू और संस्कृत मिश्रित है। उन्होंने कुछ सूक्तियों का प्रयोग भी निबंधों में किया है। जैसे-‘वीरों के बनाने के कारखाने नहीं होते।’ आचरण का रेडियम तो अपनी श्रेष्ठता से चमकता है। उनकी शैली काव्यात्मक, भावात्मक, आलंकारिक है। कहीं-कहीं वाक्य बहुत लंबे व जटिल हो गये हैं। तर्क एवं बुद्धिप्रधान निबंध उनकी शैलीगत विशेषता है। उन्होंने अंग्रेजी, पंजाबी तथा हिंदी में कई ग्रंथों की रचना की, जो इस प्रकार हैं-
अंंग्रेजी : ‘दि स्टोरी ऑफ स्वामी राम’, ‘दि स्केचेज प्रâॉम सिक्ख हिस्ट्री’, ‘हिज फीट’, ‘शॉर्ट स्टोरीज’, ‘सिस्टर्स ऑफ दि स्पीनिंग हवील’, ‘गुरु तेगबहादुर’ लाइफ’, प्रमुख हैं।
पंजाबी कृतियां : ‘अवि चल जोत’, ‘खुले मैदान’, ‘खुले खुंड’, ‘मेरा सांई’, ‘कविदा दिल कविता’।
हिंदी निबंध : ‘सच्ची वीरता’, ‘कन्यादान’, ‘पवित्रता’, ‘आचरण की सभ्यता’, ‘मजदूरी और प्रेम’ तथा ‘अमेरिका का मस्ताना योगी वाल्ट हिवट मैन’।
(लेखक श्री जेजेटी विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्रोफेसर व सुप्रसिद्ध शिक्षाविद् और साहित्यकार हैं।)

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