मुख्यपृष्ठनए समाचारलोकसभा चुनाव परिणाम...जम्मू-कश्मीर में नेकां का भविष्य उज्जवल

लोकसभा चुनाव परिणाम…जम्मू-कश्मीर में नेकां का भविष्य उज्जवल

सुरेश एस डुग्गर / जम्मू

प्रदेश में लोकसभा चुनावों के परिणाम की ओर बढ़ते रुझानों ने यह साफ कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस का भविष्य उज्जवल दिख रहा है, जिसने अब उम्मीद जताई है कि प्रदेश में अगली सरकार बनाने के लिए भाजपा को चुनौती दे सकती है जो प्रदेश में दो सीटें जीत चुकी थी। पर कांग्रेस के लिए मुसीबत इसलिए बढ़ गई है, क्योंकि लगातार तीसरे लोकसभा चुनावों में प्रदेश की जनता ने उसे नकार दिया है। यही नहीं वर्ष 2014 में प्रदेश की तीन लोकसभा सीटों पर कब्जा जमाने वाली पीडीपी का सूपड़ा साफ हो गया था और उसे सबसे बड़ा झटका अपनी अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती के दो लाख वोटों से पीछे होने का था।
यह सच है कि जम्मू संभाग में मोदी लहर के बीच कांग्रेस फिर खाता नहीं खोल पाई। संसदीय चुनाव में पार्टी को नेकां व पीडीपी का समर्थन भी काम नहीं आया। वर्ष 2014 और 2019 के संसदीय चुनावों में कांग्रेस कोई सीट नहीं जीत सकी थी। कांग्रेस ने इंडिया ब्लाक के तहत जम्मू और ऊधमपुर सीटों पर नेकां व पीडीपी के साथ गठबंधन किया था, लेकिन गठजोड़ काम नहीं आया। दोनों सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवार भाजपा उम्मीदवारों से लाखों मतों के अंतर से हार गए। कांग्रेस की उदासीनता, विश्वास की कमी, जमीनी सतह पर कार्यकर्ताओं की कमी, कमजोर नेतृत्व और प्रचार ऐसे कई कारण थे, जो पार्टी को ले डूबे।
2014 में पीडीपी और भाजपा को तीन-तीन सीटें मिली थीं, लेकिन इस बार नेकां व भाजपा को दो-दो सीटें हासिल हुई हैं। हैरानगी की बात बारामुल्ला संसदीय क्षेत्र से जेल में बंद इंजीनियर अब्दुल रशीद शेख द्वारा 2 लाख 60 हजार से अधिक मत हासिल कर पूर्व मुख्यमंत्री और नेकां के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला को शिकस्त देने की थी। हालांकि, उमर अब्दुल्ला ने अपनी सीट को बचाने की खातिर इस बार नेकां का गढ़ माने जाने वाली श्रीनगर सीट को छोड़ दिया था और उमर अब्दुल्ला का यह दांव उन पर ही भारी पड़ गया।
ऐसी ही दुर्दशा पीडीपी अध्यक्षा महबूबा मुफ्ती की भी हुई है, जो अभी तक अनंतनाग के संसदीय क्षेत्र को अपनी बपौती समझती थीं, लेकिन इस संसदीय क्षेत्र के पुननिर्धारण ने उनके सभी गणित को उल्ट दिया। नतीजतन वे नेकां के मियां अल्ताफ अहमद से 1.97 लाख मतों से हार स्वीकार करने के सिवाय कुछ नहीं कर सकती थी, जो 4.07 लाख वोट हासिल कर अपनी जीत पक्की कर चुके थे।
राजनीतिक पंडितों के अनुसार, प्रदेश के दो बड़े राजनीतिक दलों के पूर्व मुख्यमंत्रियों व अध्यक्षों नेकां के उमर अब्दुल्ला तथा पीडीपी के महबूबा मुफ्ती की हार के साथ ही कश्मीर की जनता ने वंशवाद की बेल को भी जड़ से उखाड़ दिया है। यही कारण है कि अब यह कहा रहा है कि इस संसदीय चुनाव का परिणाम प्रदेश में कांग्रेस और पीडीपी का निराशाजनक प्रदर्शन विधानसभा चुनाव में चुनौती बनेगा। संसदीय चुनाव का असर विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा इसके प्रति कोई दो राय नहीं है। विधानसभा चुनाव किसी भी समय हो सकते हैं। ऐसे में कांग्रेस व पीडीपी के लिए जमीनी स्तर पर आधार मजबूत करना आसान नहीं होगा। लगातार हार से कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरना स्वाभाविक ही है।
हालांकि, नेकां की राह भी आने वाले विधानसभा चुनावों में आसान नहीं होगी, क्योंकि भाजपा उसके लिए कड़ी चुनौती साबित होने जा रही हे तथा इंजीनियर राशिद की जीत सुनिश्चित कर कश्मीर की जनता ने यह भी संकेत दिया है कि वह व्यक्तित्व को भी अहमियत देते हैं।

अन्य समाचार