प्यार

हर गम भुलाया जाता वक्त की रफ्तार से
सूख जाते जख्म हरे, धीरे-धीरे प्यार में
नफरत के भंवर से बच सका न प्यार भी
डूब जाती जीवन नैया, पतवार बिन प्यार की
फासले ना हों दिलों में, कोई किनारा दूर नहीं
वो पास आएं या हम बुलाएं, बात जरा सी
कर देती है दिलों में दीवारें खड़ी,
रिश्तों में दरारें बड़ी
मकसद रंज भुलाना है, प्यार का चलन चलाना है
गिले-शिकवे, ‘सिक्के खोटे’
इनसे दामन बचाना है
चार दिन की जिंदगी के हर पल का लुत्फ उठाना है।
-त्रिलोचन सिंह अरोरा

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