सामना संवाददाता / मुंबई
देश के अनमोल ‘रतन’ को कल हर किसी ने नम आंखों से विदा किया। इस मौके पर इंसान तो इंसान, स्ट्रीट डॉग्स भी रो दिए। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रतन टाटा पशु प्रेमी थे और उन्हें स्ट्रीट डॉग्स से खासा लगाव था। फोर्ट स्थित टाटा मुख्यालय में जहां इंसानों को कड़ी चेकिंग के बाद प्रवेश मिलता था, वहीं स्ट्रीट डॉग्स को वहां बेरोक-टोक आने-जाने की अनुमति थी। ऐसा इसलिए क्योंकि रतन टाटा ने मुख्यालय में इन पशुओं के रहने व खाने-पीने की खास व्यवस्था कर रखी थी। कहते हैं पशुओं को अनहोनी का पता पहले चल जाता है। यही कारण है कि दक्षिण मुंबई में टाटा मुख्यालय के आसपास के स्ट्रीट डॉग्स मानो अपने मालिक के महाप्रयाण से आहत और गमगीन थे।
टाटा मुख्यालय में
बेरोक-टोक
आते-जाते हैं बेजुबान!
दक्षिण मुंबई स्थित टाटा का मुख्यालय अन्य कंपनियों के मुख्यालय से अलग है। औपनिवेशिक युग की इस इमारत के प्रवेश द्वार पर वैसे तो हर आगंतुक की तलाशी ली जाती है, लेकिन यहां स्ट्रीट डॉग्स के आने-जाने पर कोई पाबंदी नहीं है। दशकों से यहां काम करने वाले कर्मचारियों को यह निर्देश जारी किया जाता रहा है कि वे इन बेजुबानों के आने जाने पर रोक नहीं लगाएं और बेरोकटोक आने जाने दें। यह सब सिर्फ एक व्यक्ति रतन टाटा के मूक पशुओं के प्रति प्रेम और चिंता का परिणाम है, जो १९९१ से २०१२ तक टाटा संस के अध्यक्ष पद पर रहे तथा बाद में कुछ समय के लिए फिर से इस पद को संभाला। कहा जाता है कि एक बार टाटा ने मुख्यालय के बाहर बारिश में एक स्ट्रीट डॉग को बारिश से बचने के लिए संघर्ष करते देखा था। इसी के बाद उन्होंने परिसर के अंदर स्ट्रीट डॉग्स के प्रवेश के संबंध में विशेष निर्देश दिए। बेजुबान जीव के प्रति उनकी सहानुभूति इतनी गहरी थी कि जब समूह ने कुछ साल पहले मुख्यालय का नवीनीकरण किया तो २०१८ में उसने परिसर के भूतल पर विशेष तौर पर स्ट्रीट डॉग्स के लिए समर्पित एक हिस्से का निर्माण कराया। एक बड़े कमरे को उनके निवास स्थान के रूप में बनाया गया है जो कई सुविधाओं से लैस है और यह एक आम इंसान को भी स्ट्रीट डॉग्स से ईर्ष्या करने पर मजबूर कर देगा। कमरे में खाने-पीने के लिए एक अलग स्थान है। उन्हें एक कर्मी द्वारा नहलाया जाता है। कमरे में उनके सोने के लिए भी जगह है, जहां वे आराम की नींद ले सकते हैं। कुछ स्ट्रीट डॉग्स वहां स्थायी रूप से रहते हैं, लेकिन अक्सर कुछ नए स्ट्रीट डॉग्स भी होते हैं, जिन्हें आने दिया जाता है और उनके साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जाता है।