सामना संवाददाता / मुंबई
लगभग एक साल पहले, बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) ने मढ और वर्सोवा द्वीप को जोड़ने वाले केबल-स्टे पुल के लिए पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से कोस्टल रेगुलेशन जोन (सीआरजेड) की मंजूरी हासिल की थी। हालांकि, इस महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए अब भी वन विभाग और बॉम्बे हाई कोर्ट से जरूरी मंजूरियों का इंतजार है। इस परियोजना से क्षेत्र में मौजूद मैंग्रोव प्रभावित होंगे, जिसे लेकर आपत्तियां उठाई गई हैं।
२०१५ में पहली बार प्रस्तावित इस पुल को पांच साल की योजना और डिजाइनिंग के बाद मंजूरी मिली। २.०६ किलोमीटर लंबे और २७.५ मीटर चौड़े इस पुल को केबल-स्टे डिजाइन में बनाया जाएगा। इसमें चार लेन होंगी, जिनमें दो लेन हर दिशा में होंगी। यह पुल वर्सोवा कोलीवाड़ा के पास अमरनाथ रोड को मढ जेट्टी से जोड़ेगा। इस पुल की अनुमानित लागत १,२४६ करोड़ रुपए है, जिसमें निर्माण, तीन साल का रखरखाव, कास्टिंग यार्ड का किराया और मजदूरी व सामग्री की लागत में उतार-चढ़ाव शामिल है। इसे ३६ महीनों में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है।
मैंग्रोव के कारण बढ़ी मुश्किलें
बीएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘सीआरजेड मंजूरी मिलना परियोजना के लिए एक बड़ा कदम था, लेकिन अब भी हमें वन विभाग से एनओसी और बॉम्बे हाई कोर्ट से अंतिम मंजूरी की जरूरत है। वन विभाग की अनुमति मिलने के बाद रिपोर्ट हाई कोर्ट में जमा की जाएगी। इसके बाद ही परियोजना का प्रारंभिक कार्य शुरू किया जा सकेगा।’ पुल के प्रस्तावित मार्ग में मैंग्रोव का क्षेत्र आता है, जो सीआरजेड के अंतर्गत है। इसे ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र कोस्टल जोन मैनेजमेंट अथॉरिटी (एमसीजेडएमए) ने बीएमसी को मैंग्रोव को बचाने के लिए वैकल्पिक रास्ता तलाशने की सलाह दी थी। डिजाइन में संशोधन के बाद बीएमसी को फरवरी २०२३ में एमसीजेडएमए से मंजूरी मिली।
फेरी सेवा पर निर्भरता
वर्सोवा क्रीक के कारण मढ और वर्सोवा के बीच कोई सीधा सड़क संपर्क नहीं है। यहां के लोग फेरी सेवा पर निर्भर हैं, लेकिन मानसून के दौरान चार महीने यह सेवा बंद रहती है, जिससे दैनिक यात्रियों को भारी परेशानी होती है। यह पुल न केवल इन क्षेत्रों के लोगों के लिए राहत लेकर आएगा, बल्कि पूरे पश्चिमी उपनगर में यातायात को भी सुगम बनाएगा। अब देखना यह है कि परियोजना को कब तक अंतिम मंजूरी मिलती है और काम कब शुरू होता है।