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मुंबई का माफियानामा : अनीस की धरपकड़

विवेक अग्रवाल

वलसाड़ की घटना के कई माह बाद की बात है…
उन दिनों डीएस मुंबई में तैनात थे…
एक दिन वे सरकारी जीप में कहीं जा रहे थे…
अचानक अपने आगे उन्होंने कुछ ऐसा देख लिया कि सरपट जीप भगाने लगे…
साथ बैठे बंदे से कहा कि वो कसकर सामने लगा हैंडल पकड़ ले…
…सामने वही आसमानी मर्सिडिज कार थी, जो वलसाड़ में गिरफ्त से बच निकली थी।
कार का पीछा करते डीएस टेमकर मोहल्ले में जा घुसे। कार से अभी चालक निकला ही था कि डीएस सरकारी रिवॉल्वर हाथ में लिए युवक के सिर पर जा सवार हुए। उसकी कनपटी पर रिवॉल्वर रख दी। वह युवक भौंचक्का खड़ा रह गया।
लेकिन ये क्या? जहां उस युवक की कार रुकी थी, बाहर बारात सजी थी, बैंड बज रहा था, कोई डेढ़ सौ बाराती नाच-झूम रहे थे, घोड़ा तैयार खड़ा था, रोशनी के हंडे सिर पर लिए मजदूर खड़े थे, अचानक सब खामोश हो गए। वहां सन्नाटा छा गया। वह युवक अनीस था। वह बारात नूरा की सजी थी। घर दाऊद इब्राहिम का था और तमाम भीड़ के बीच खड़ा था अकेला डीएस।
तुरंत अंदर खबर गई। दाऊद दौड़ता हुआ बाहर आया। नजारा देखा तो सब भांप गया। उसने डीएस को बताया कि घर में शादी है। डीएस भी कम जिद्दी न थे। दाऊद और अनीस को उसी आसमानी कार में बैठाकर आगे-आगे कस्टम्स हाउस ले चले। पहले नीचे कार सील की, फिर ऊपर कमरे में लाकर दोनों से बात की –
‘अब बोलो…’
‘सर… आज घर में शादी है… अनीस नहीं होगा तो वैâसा लगेगा?’
‘लेकिन मैं इसे नहीं छोड़ सकता…’
‘सर शादी होने दीजिए… मैं इसे लेकर आपके पास आऊंगा…’
‘कब तक पूरी होगी शादी?’
‘सुबह पांच बजे तक सब निपट जाएगा…’
‘तो ठीक है… साढ़े छह बजे यहां आ जाना… ९० मिनट एक्स्ट्रा दे रहा हूं… ठीक?’
‘जी सर…’
यह कहकर अनीस और दाऊद कमरे के बाहर जाने लगे। अचानक डीएस की आवाज गूंजी –
‘दाऊद सुनो… ’
दाऊद और अनीस के कदम ठिठक गए। वे पलटकर वहीं खड़े हो गए। दाऊद बोला –
‘जी सर… ’
‘तुम्हारी जमानत पर छोड़ रहा हूं इसे… तुम्हें ही वापस लाना है इसे…’
‘जी सर…’
और सच में तय समय से पहले ही दाऊद ने अनीस को डीएस के सामने हाजिर कर दिया। अब डीएस जिद पर अड़ गए कि सोने के २४० बिस्किट बरामद करवाओ। दाऊद संकट में पड़ गया। उसने डीएस से कहा कि माल तो तभी वापस कर दिया था, अब कहां से लाएगा। डीएस ने अनीस को बाकायदा गिरफ्तार कर अदालत में पेश कर दिया, जहां से उसकी जमानत करवानी पड़ी।
बस, उस दिन से दाऊद के मन में डीएस के लिए जबरदस्त सम्मान का भाव पैदा हो गया। उसने एक दिन खुद डीएस से कहा था, ‘सर, अगर मैं कस्टम्स में काम करता न, तो आपके अंडर काम करता।’
तो ये था वलसाड़ के किस्से का दूसरा हिस्सा, जो बरस बाद मुंबई में हुआ था।
लेकिन दाऊद तो अहित करने वाले को कभी नहीं बख्शता, उसने डीएस को वैâसे छोड़ दिया? जवाब था:
– आदमी बहोत मिलते हैं भाय, ईमानदार आदमी नहीं। समझे क्या?

(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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