मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा : क्रिकेट मैच ने बनाया गिरोहबाज

मुंबई का माफियानामा : क्रिकेट मैच ने बनाया गिरोहबाज

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

एजाज लकड़ावाला ने जल्द ढेर सारी दौलत कमाने का सपना देखा। अपने पिता की तरह छोटा-मोटा काम करते हुए रूखी-सूखी पर वह जीवन बसर नहीं करना चाहता था। एजाज की अति महत्वाकांक्षा ने ही उसे गिरोहबाज बनाया था। एजाज को जानने वाले पुलिस अधिकारी और मुखबिर कहते हैं कि मुंबई की रक्त से भीगी गलियों में कदम रखने के पहले उसने कुछ आर्थिक अपराध किए थे। उसके बाद सोने की तस्करी करने लगा जो अधिक समय तक नहीं कर पाया। उसे ९० के दशक में कंजर्वेशन ऑफ फॉरेन एक्सचेंज एंड प्रिवेंशन ऑफ स्मगलिंग एक्ट-१९७४ (कोफेपोसा) के तहत कस्टम्स ने गिरफ्तार भी किया था।
एजाज का जन्म १९७१ में मोहम्मद अली रोड स्थित गोली मोहल्ला के नूर अस्पताल में हुआ था। लकड़ावाला ने सेकेंडरी तक पढाई सेंट स्टेनिस्लस स्कूल से की। उसके बाद हायर सेकेंडरी के लिए बांद्रा के नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया, लेकिन १२ वीं की परीक्षा दिए बिना बाहर आ गया। उसने बीच में पढ़ाई छोड़ कमाई करने की सोची। अपने चाचा सिद्दिकी लकड़ावाला की कंपनियों ज्योती ट्रांसपोर्ट और राजधानी ट्रांसपोर्ट के लिए एजाज काम करने लगा। यहां उसका मन अधिक दिनों तक नहीं लगा क्योंकि आमदनी बेहद सीमित थी।
इसी बीच उससे एक अनहोनी हुई, जिसने जीवन का रुख बदल दिया। १९९३ में मात्र २२ साल की उम्र में उससे जोगेश्वरी में हत्या हो गई। इसी हत्या ने उसे अपराध की दुनिया में घसीट लिया। पुलिस सूत्रों के मुताबिक, हीरेन मेहता से क्रिकेट मैच में किसी कारण एजाज का झगड़ा हो गया। गुस्से में एजाज ने हीरेन की हत्या कर दी। एजाज को पुलिस ने गिरफ्तार कर आर्थर रोड जेल भेज दिया। अदालत से बरी होकर बाहर आने पर उसे लगा कि वह कानून से बड़े मजे में खिलवाड़ कर सकता है; और उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा। उसने जेल में एक से बढ़ कर एक माफिया सरगनाओं, हत्यारों और शूटरों का जीवन देखा था। इसके बाद वह अपराध की संगीन दुनिया में घुस गया। जेल में उसके संबंध सुनील मलगांवकर उर्फ नटिया से बने। रिहाई के बाद भी एजाज के नटिया से संबंध बने रहे। नटिया सजा पूरी कर बाहर आया तो मलेशिया भाग गया। उसे पता चला कि विरोधी गिरोह के सदस्य उसके पीछे पड़े हैं। वह कभी भी मारा जाएगा। एजाज का वह पहला गुरु बना। उसने लकड़ावाला को स्याह सायों के संसार का ककहरा सिखाया।
एजाज ने जोगेश्वरी-पूर्व के प्रताप नगर निवासी अपराधी राजेंद्र पारकर उर्फ राजू से भी संबंध स्थापित किए। उससे भी एजाज ने अपराध के काफी गुर सीखे। पुलिस अधिकारी दावा करते हैं कि एजाज का बड़ा गिरोह कभी नहीं रहा। वह हमेशा अपने बूते काम करने का आदी रहा। वह गिरोह में अधिक लोगों को नहीं रखता था, इसी कारण साल २००२ में जब लकड़ावाला गिरोह के छह सदस्य मुठभेड़ में मारे गए तो उसके गिरोह की हालत खस्ता हो गई थी। एजाज की कहानी से साफ है कि किसी युवक का अति महत्वाकांक्षी होना गिरोहबाजों के लिए बड़ा अच्छा अवसर पैदा करती है, उनके लिए एक नया सिपहसालार तैयार करती है, एक नया शूटर पैदा करती है, एक नया हवाला कारोबारी बनाती है, एक नया तस्कर तैयार करती है।
मुखबिर ने बात पूरी करने के पहले इतना और जोड़ा-
‘बहोत फास्ट था एजाज, किसी का सुनता नर्इं था।’

(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

अन्य समाचार