विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
लोअर परेल की शरमिन गली, उन दिनों हर कोई उसमें जाने का साहस नहीं करता था, कारण? किसे अपनी जान प्यारी नहीं होती। अरे भाई, वहीं तो शशि राशिम रहता था। वह कोबरा गैंग का सरदार। वह खुद किसी किंग कोबरा से कम खतरनाक न था। उन दिनों के सबसे खतरनाक गिरोहबाजों में शशि एक था।
मुंबई में किसी गिरोह सरगना पर सबसे पहले टाडा का मामला शशि राशिम और येड़ा गोपाल पर दर्ज हुआ था… कारण?
उस जमाने में पहली बार मुंबई में दोनों से एके ४७ रायफल बरामद हुई थी। मुंबई अपराध शाखा के अफसरान एके ४७ रायफल गिरोहबाजों के पास देख कर भौंचक्के रह गए थे। उन दिनों टाडा कानून लागू हुए अधिक वक्त नहीं बीता था। टाडा के तहत प्रतिबंधित क्षेत्र में प्रतिबंधित हथियार रखने पर पाबंदी थी, इसलिए मानवाधिकारवादियों की दृष्टि में कथित काला कानून ऐसे लोगों, गिरोहबाजों, आतंकियों पर तुरंत लग जाता था।
गोपाल और शशि राशिम का भी मुंबई पुलिस ने यही हाल किया। इस तरह मुंबई में टाडा कानून लागू होने का इतिहास इन दोनों से शुरू हुआ।
तो फिर अतिशयोक्ति न होगी, अगर स्याह साए मानते हैं-
‘जिसके पास झा़ड़ू, सबसे बड़ा फा़ड़ू।’
(पीपी की जुबानी)
डी कंपनी का खबरी
उसका असली काम मुंबई पुलिस में ‘साधे’ हुए अफसरान को ‘सूचना’ देकर ‘मुठभेड़’ करवाना था। यही उसका पेशा था। इस मुखबिरी के पीछे वो बहुत कुछ कर गुजरता था। छोटा शकील के लिए ९० के दशक में एक खास काम के लिए एक खास आदमी नियुक्त था। वह था – अजीज खबरी।
कहते हैं कि जावेद फावड़ा उर्फ अबू सायमा की ‘डी’ कंपनी से जुड़ाव की टिप भी उसी ने इंस्पेक्टर वसंत ढोबले को दी थी। बताया कि जावेद फावड़ा लिंकिंग रोड पर बैठने वाले फेरीवालों, खोमचेवालों से हफ्तावसूली करता है। वह शकील गिरोह के सदस्यों को हथियार देने, संरक्षण देने और फरार होने में मदद करता है।
उसने निसार और शादाब को इफ्तारी के बहाने अपने अड्डे पर बुला कर पिटाई करवाई थी और उन्हें जान से मारने की धमकी दी थी। उन्होंने इसकी रपट खार थाने में दर्ज करवाई थी। अधिकारियों ने इसमें कुछ नहीं किया क्योंकि उनका खास और मुंहलगा खबरी जो इसमें शामिल था।
वह पुलिस अफसरान की बड़ी मदद करता था, जो अपराध या वारदात सुलझता, वरिष्ठ अधिकारियों, जनता या राजनीतिक दबाव बढ़ जाता तो अजीज खबरी ‘डमी आरोपी’ देकर पुलिसवालों की जान बचाता था।
अजीज खबरी का अड्डा जूना खार इलाके में था। वह रहता बांद्रा की रेलवे कॉलोनी में था। उसने सोलंकी बिल्डर को हफ्ते के लिए धमकाया था। इसमें वह गिरफ्तार हुआ लेकिन ‘सबूतों के अभाव’ में बरी हो गया।
१४ जनवरी १९९८ को इसकी गिरफ्तारी बड़े अजूबे मामले में हुई। उसने भी कमाल कर दिया था। विधायक सोहेल लोखंडवाला के भांजे निसार कुरैशी पर धारदार हथियारों से जानलेवा हमला किया था।
उसकी हरकतें कहां जाकर रुकेंगी, ये तो पुलिस अधिकारी भी नहीं बता पाते हैं। एक बुजुर्ग ‘करु पांडे’ का कथन था-
‘जब वफादार कुत्ता भी पागल हो जाता है तो लोग उसे गोली मार देते हैं।’
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)