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मुंबई का माफियानामा : विदेश के बदले डी-कंपनी शामिल होकर अय्याशी के सपनों को किया पूरा

 

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

वह ढेरों कमाने विदेश जाना चाहता था…
विदेश में कमाई से मौज-मजे करना चाहता था…
लड़कियां, शराब, महंगे होटल, सिगरेट, कपड़ों के शौक पूरे करना चाहता था…
…वह विदेश तो न गया, डी-कंपनी में अपने शौक पूरे करने गया, वहां से जेल भी गया।
मार्च २००३ के पहले सप्ताह में अबू सलेम से रिश्तों और उसके पैसों से फिल्म बनाने के आरोप में गिरफ्तार ‘तुम’ फिल्म के निर्माता मोहम्मद आदिल फारुख उर्फ गुड्डू के बारे में पुलिस ने यह भी जांच की है कि उसने अब तक कितनी लड़कियां डी-कंपनी के सिपहसालारों और प्यादों को परोसने के लिए खाड़ी देश भेजी थीं। उसके बारे में काफी लोग यह कहते पाए गए कि वह फिल्म निर्माण कंपनी की आड़ में डी-कंपनी के लिए देश-विदेश में लड़कियों की सप्लाई करता था।
आदिल की गिरफ्तारी के बाद मुंबई पुलिस का निशाना बने कमाल रशीद और उसकी पत्नी आएशा कमाल रशीद के बारे में भी पुलिस की यही राय है कि वे भी डी-कंपनी के लिए पहले यही काम करते थे। जब आदिल ने उनके साथ काम शुरू किया, ये काम उसे सौंप दिया।
सहारनपुर उप्र के मूल निवासी आदिल को कमाल के भाई ने ही अपने बड़े भाई के दिल्ली दफ्तर में नौकरी करने भेजा था। आदिल उसका सहपाठी था। दिल्ली दफ्तर में कुछ समय काम करने के बाद कमाल ने उसे मुंबई भेजा, ताकि वहां नए धारावाहिक का सारा कामकाज देखे। उसे यहां धारावाहिक और फिल्मों में काम करने के बहाने लड़कियां फंसाने का काम भी दिया।
पुलिस अधिकारी दावा करते हैं कि इस आधार पर ही आदिल ने काफी लड़कियों को आगामी धारावाहिक-फिल्म में काम देने के बहाने अपनी ‘ब्यूटी ब्रिगेड’ में शामिल किया। उनका इस्तेमाल गिरोह द्वारा मांग के मुताबिक होता था।
डी-कंपनी से अबू के अलग होने के बाद कमाल भी उसके साथ ही अलग हो गया। इसके बाद उसने गिरोह के लिए लड़कियों की सप्लाई भी खाड़ी देशों में बंद कर दी। यह बात अनीस को रास नहीं आई कि अबू के कारण उसके गिरोह का कोई सूबेदार हुक्मउदूली करे।
अपराध शाखा अधिकारी बताते हैं कि फिल्म ‘तुम’ के निर्माता आदिल ने बैचलर ऑफ यूनानी मेडीसिन की परीक्षा दी थी। उसका परिणाम गिरफ्तारी तक तो घोषित नहीं हुआ था। आदिल को गिरफ्तार करने वाले दस्ते के इंस्पेक्टर दया नायक के मुताबिक आदिल की इच्छा विदेश में पढ़ने की थी, लेकिन वहां जाने के पैसे न थे। वो पैसे कमाकर विदेश जाना चाहता था। इसी कारण उसे कमाल के दफ्तर में काम करने के लिए उसके साथी ने भेजा। चूंकि कमाल खाड़ी देशों के लिए रोजगार एजेंसी चलाता था और अवैध आव्रजन का धंधा भी नकली पासपोर्ट और वीजा से करता था, इसलिए उसे भी गिरोह ने इसी काम में लगाया था।
आदिल ने पुलिस को बताया कि कमाल के माफिया से संबंध होने के कारण ही वह भी कई सरगनाओं, सूबेदारों और प्यादों के संपर्क में आया। माफिया के धन से उसे अय्याशी के वे तमाम साधन दिल्ली और मुंबई में उपलब्ध होने लगे, जो हासिल करने के लिए वह आगे पढ़ने के लिए विदेश जाना चाहता था। उसे विमानों में घूमने, पंचतारा होटलों में रहने और बॉलीवुड की चमक-दमक ने ऐसा जकड़ा कि विदेश जाना भूल, यहीं स्याह सायों के संसार का हिस्सा बन गया, लेकिन उसके लिए जश्न का वक्त थोड़ी देर का साबित हुआ। वह मात्र एक साल तक ही सुख भोग पाया कि पुलिस की गिरफ्त में आ गया।
डी-कंपनी ने आदिल को पैâजल फिल्म्स एफकेएफ का प्रबंध निदेशक बना रखा था, जो काले धन की धुलाई हेतु खोली कंपनी थी। उस बैनर में आदिल को लड़कियों के इंतजाम का काम भी सौंपा था। एफकेएफ के असली मालिक कमाल रशीद और उसकी पत्नी आएशा के बारे में कहा गया कि दोनों ‘तुम’ फिल्म के मुहूर्त के दौरान होटल में थे, लेकिन वहां आने वाले लोगों से मिले नहीं। उन्होंने ‘प्रâंट’ पर आदिल को ही रखा। पुलिस का दावा था कि कमाल तो अबू सालेम का वित्त प्रबंधक था। वह एक प्रकार से अबू की अवैध गतिविधियों का भारत प्रभारी था। इस बात ने साबित कर दिया कि काली दुनिया और रुपहली दुनिया के बीच तालमेल बैठाना लगभग असंभव है। कोई अपराध जगत से आकर सपनों के संसार में दबंगई करने की कोशिश करे तो तुरंत उसके बारे में सारी दुनिया जान जाती है फिर तो उसका एक-दो-तीन होते देर नहीं लगती, जैसा आदिल के साथ हुआ।
काली दुनिया में तो बोलते ही हैं:
– कुत्ते को घी नहीं पचता है भाय।

(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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