मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा : कच्छी मस्तान

मुंबई का माफियानामा : कच्छी मस्तान

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

विवेक अग्रवाल

जुम्मा वली मामन कच्छ के वरनोरा गांव का रहने वाला था। उस जमाने में मुंबई से कराची तक वह ‘कच्छी मस्तान’ के नाम से पहचाना जाता था। मुंबई के हाजी मस्तान की तर्ज पर जुम्मा का ये नामकरण हुआ था। उसका गुरु मांडवी सलाया निवासी ‘जान मामन माणेक उर्फ जानी भाई उर्फ काली टोपी’ था।
कच्छी मस्तान का भाई सुमरा वली मामन भी काले संसार का सधा खिलाड़ी था। तस्करों की दुनिया में उसे जुमा के बेटे और गुजरात में ‘अधाड़ा’ तो महाराष्ट्र में ‘अद्धा’ के नाम से लोग जानते व पहचानते थे।
बाप-बेटे की मुठभेड़ में मौत को लेकर तरह-तरह के किस्से हैं। एक बात यह भी प्रचलित है कि मुठभेड़ विशेषज्ञ कुलदीप शर्मा के कहने पर सब इंस्पेक्टर विश्नोई ने दोनों को मार गिराया। १९८३ की इस मुठभेड़ में सोने के ५०० बिस्किटों का ‘झोल’ करने के आरोप भी लगते रहे हैं।
कच्छी मस्तान को जानने वाले बताते हैं कि वो भले अंगूठा छाप था, लेकिन बड़ा दीदादिलेर था। शुरू में उसके पास ऊंट नहीं थे। वह गधों पर तेंदू पत्ते और सुपारी की तस्करी पाकिस्तान तक करता था।
उन दिनों साइकिल ट्यूब का पीतल वाला वॉल्व भारतीय बाजार में महज पांच पैसे में बिकता था। उसकी पाकिस्तान के खुले बाजार में कीमत २ रुपए थी। भारत में शराब की जो बोतल ७० की थी, वो कराची में ५०० रुपए में बिकती थी। भुट्टो शासनकाल में इन पीतल वॉल्व और शराब की तस्करी में ही कच्छी मस्तान ने खूब पैसा कमाया था।
कच्छी मस्तान के बारे में बताते हुए उन बुजुर्गवार की आंखों में पूरा दृश्य मानो जीवंत हो रहा था। वे कहते हैं:
– कच्छी मस्तान नहीं होता तो पाकिस्तान की लाईन नहीं होती।
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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