मुख्यपृष्ठखबरेंमुंबई का माफियानामा : कच्छी ऊंटों के जूते!

मुंबई का माफियानामा : कच्छी ऊंटों के जूते!

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
क्या आप जानते हैं कि कच्छ के असली तस्कर कौन थे, तो जान लें कि वे तो कच्छ के सबसे शानदार पशु ऊंट ही थे। कच्छ का रण याने रेगिस्तान ऐसा इलाका है, जहां सफेद चमकती चांदी सी रेत के अलावा कुछ नहीं होता। लेकिन ६० और ७० के दशक में पाकिस्तान से नशा ऊंटों पर ही आता था।
रेगिस्तान में इन ऊंटों को दिशा का ज्ञान इतना जबरदस्त होता है कि कच्छ के गांव में माल लाद कर अकेला छोड़ते तो पाकिस्तान तक मजे में चले जाते। भारतीय माल उतार कर, पाक सरहद के गांव में नशा या अन्य सामान फिर ऊंट पर लाद देते। ऊंट को अच्छे से खिला-पिला कर भारतीय सरहद की तरफ मुंह करके छोड़ देते थे। ऊंट फिर अपने ‘खूंटे’ या ‘थान’ तक आ पहुंचता।
उन्हें बीच में पकड़ लें तो भी उनके साथ आदमी न होने से माल ‘लावारिस’ हो जाता था। कस्टम्स, बीएसएफ और पुलिस अधिकारी भी काफी समझदार और जानकार होते हैं। वे ऊंट का माल उतारने के बदले उसे ‘खूंटे’ तक जाने देते थे। जैसे ही माल उतारने की कोशिश होती, छापा मार कर तस्करों को रंगे हाथों पकड़ते थे। कस्टम्स अधिकारी कई बार सरहदी गांवों में आकर ऊंटों के पांव देखते थे, खुरों में नमक चिपका दिखते ही समझ जाते थे कि वे पाकिस्तान से वापस लौटे हैं।
तस्कर भी उस जमाने में बड़े ही शातिर थे। ऊंटों के खुरों में नमक न चिपक जाए, इसलिए वे उनके पांवों पर प्लास्टिक की थैलियां बांधने लगे। आदमी को भले ही वहां जूता नसीब न था, ऊंटों को जरूर जूता मिलता था।
तो लो जी, हो गया काम। अब वैâसे चिपकेगा नमक?
– जांच एजंसियां डाल-डाल, तस्कर पात-पात।
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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