मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा : डोंगरी अपराधियों की ‘नर्सरी’

मुंबई का माफियानामा : डोंगरी अपराधियों की ‘नर्सरी’

विवेक अग्रवाल

हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

क्या किसी को याद है कि दाऊद इब्राहिम कितना शिक्षित था। या कोई जानता है कि उसका बड़ा भाई साबिर कितना पढ़ा लिखा था या उसके भाई इकबाल, अनीस, नूरा, मुस्तकिन और दो बहनें कितना पढ़ लिख सके थे? उत्तर होगा नहीं।
अपराध शाखा के एक अधिकारी बताते हैं कि दाऊद की चार बहनें थीं और वे सात भाई थे। कोई भी अधिक पढ़-लिख नहीं पाया था क्योंकि जिस इलाके में वे रहते थे, वहां पढ़ने-लिखने से अधिक जोर भाईगिरी सीखने और करने पर था। लड़कियों को उन दिनों यूं भी अधिक नहीं पढ़ाते थे क्योंकि उनके लिए दूल्हा खोजना भारी हो जाता था। सभी जानते थे कि साबिर दुनियादारी अच्छे से निभाना जानता है। दाऊद के साथ अच्छी बात ये थी कि वो दोस्त खूब बनाता था। साबिर और दाऊद नागपाड़ा के अहमद सेलर स्कूल में पढ़े हैं। अच्छी शिक्षा मिलने के बावजूद संगत का असर उनके सिर चढ़ कर बोला। उनके आसपास ऐसे बच्चे थे, जो गुंडागर्दी करते थे। गलत संस्कार मिले तो वे भी काली दुनिया की बदनाम गलियों में धंसते चले गए।
जब अपराध सिर चढ़ कर बोलता है तो सब पीछे धरा रह जाता है। न रिश्ते दिखते हैं, न परिवार दिखता है, न शिक्षा की कदर होती है, न गुरू, न देश, न धर्म, साबिर और दाऊद के साथ भी ऐसा ही हुआ। वे भी छठी कक्षा तक पढ़ पाए। उसके बाद पिता की इच्छा के विपरीत दोनों जरायम की दुनिया में जा पहुंचे। अपराध शाखा के कुछ अधिकारी तो कहते हैं कि वे दोनों गलियों में सब्जी व फल बेचने वालों से हफ्तावसूली करते थे। साबिर और दाऊद पर पहला मामला दिसंबर १९७४ में दर्ज हुआ था। उन पर अपने गिरोह के साथ एक व्यापारी से सरे राह पौने चार लाख रुपए लूटने का मामला दर्ज हुआ था। इस मामले में उनकी गिरफ्तारी हुई। मामला अपहरण, हत्या के प्रयास, हत्या जैसा गंभीर न था, लिहाजा वे बच गए। इसके बाद साबिर और दाऊद की हिम्मत असल मायने में बढ़ गई। और यहीं से भूमिगत संसार में घुसने की राह भी खुल गई।
झक्क सफेद बुशर्ट की कॉलर को गले की गंदगी से बचाने के लिए लगाए कपड़े को दाएं हाथ से सहेजते हुए अपराध शाखा के पीछे बनी वैंâटीन के बाहर चाय की लंबी चुस्की लेते पूर्व इंस्पेक्टर मगली कहते हैं,
– जैसे ‘जेलों से अपराधी ग्रेजुएट’ होते हैं, वैसे ही डोंगरी अपराधियों की ‘नर्सरी’ है।
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

अन्य समाचार