विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।
पुलिस का दावा है कि डी-कंपनी का सेनापति रहा एजाज पठान ९३ बमकांड में शामिल था…
एजाज कहता है कि उसे पता न था कि दाऊद, टाईगर, शकील वगैरह ने ऐसा खतरनाक इरादा किया है…
एजाज ने दावा किया की इस खतरनाक साजिश में उसकी कोई भूमिका न रही…
उसे तो दाऊद ने शकील के कहने पर साजिश से दूर रखा था…
…जब एजाज को पता चला कि सबने क्या मंसूबा पाला है, तो समझाने की बहुत कोशिश की।
डोंगरी के मुर्गी मोहल्ले में एजाज पैदा हुआ और पला-बढ़ा था। एजाज के लिए जवानी में गिरोहबाज करीम लाला बड़ा करिश्माई व्यक्तित्व था। उसके साथ काम करने की तमन्ना सबकी होती, एजाज की भी थी। तब समद खान का इलाके में खासा दबदबा था। पठान होने के नाते एजाज ने भी इलाके में रुआब गांठना शुरू किया। उसका कोई विरोध करता तो मारपीट पर उतर आता। अपने इर्दगिर्द कुछ टपोरियों का सुरक्षा घेरा भी बना लिया। उसने सदा करीम लाला और दाऊद से मधुर रिश्ते रखे। मेमन भाईयों ने उसे तस्करी का माल गोदियों से सुरक्षित ठिकानों तक पहुंचाने के लिए नियुक्त किया।
काफी समय तक वह डी-कंपनी के लिए काम करता रहा। बाद में टाईगर मेमन ने एजाज के लड़कों को पाक भेज कर आईएसआई से बम व आतंकी गतिविधियों का प्रशिक्षण दिलाया। बमकांड के बाद डरा हुआ एजाज दुबई से कराची चला गया।
आईएसआई ने उसकी भी कराची में अच्छी मदद की ताकी वह कारोबार जमा ले। वहां भी उसकी कुछ स्थानीय गिरोहों से हल्की–फुल्की झड़पें होती रहीं। उस पर दो बार पाकिस्तान में जानलेवा हमले हुए। एक बार गोली उसके गले में जा फंसी। ऑस्ट्रेलिया में लंबा इलाज चला। खुद दाऊद ने उसका इलाज करवाया था। पता चला कि इन हमलों में शकील का हाथ था।
कहते हैं कि एजाज भले ही गिरोहबाज था, शराफत का दामन उसने कभी नहीं छोड़ा। वह लोगों से बात भी बड़े सामान्य और पूरे शिष्टाचार से करता था। कई दफा उसने फोन पर दुबई या कराची में रहते हुए बात कीं तो उसके विनम्र और शालीन तरीके से लगा ही नहीं कि इस शख्श को लोग इतना बड़ा गिरोह सरगना मानते हैं।
एजाज पठान की हालत देख कर बंदे ने कहा:
– एजाज भाय का तो बीबीसी में बिन पगार – फुल हजेरी हो गया सर…
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)