मुख्यपृष्ठअपराधमुंबई का माफियानामा : वरदा के ‘पंटर’

मुंबई का माफियानामा : वरदा के ‘पंटर’

विवेक अग्रवाल
हिंदुस्थान की आर्थिक राजधानी, सपनों की नगरी और ग्लैमर की दुनिया यानी मुंबई। इन सबके इतर मुंबई का एक स्याह रूप और भी है, अपराध जगत का। इस जरायम दुनिया की दिलचस्प और रोंगटे खड़े कर देनेवाली जानकारियों को अपने अंदाज में पेश किया है जानेमाने क्राइम रिपोर्टर विवेक अग्रवाल ने। पढ़िए, मुंबई अंडरवर्ल्ड के किस्से हर रोज।

वरदा भाई का दायां हाथ ख्वाजा भाई था। वह एंटाप हिल में ‘जेनिथ’ बीयर बार चलाता था। पहली बार जब वायसी पवार ने ख्वाजा भाई को गिरफ्तार किया तो वरदा भाई ऐसा डरा कि मुंबई से कुछ दिनों के लिए गायब ही हो गया। बाद में पता चला कि वो मद्रास चला गया है, वहीं निर्वासित और सेवानिवृत्त जीवन जीते हुए उसने अंतिम सांस ली। उसके जाने के बाद बचा हुआ कामकाज ख्वाजा भाई ने संभाल लिया।
वरदा भाई का एक और सबसे करीबी सहयोगी नाटा भाई था। नाम भाई नामक पंजाबी बंदा भी वरदा के लिए काम करता था, उस पर वरदा को काफी विश्वास था। टिल्लू उस्ताद तो वरदा के लिए मटका और जुए का तमाम काम संभालता था। कुक्कू सरदार उर्फ कुक्कू दारूवाला गिरोह का देसी शराब की कमान संभालता था। उसे एक हत्याकांड में सजा भी हुई थी। बाद में अपनी अवैध कमाई उसने संपत्ति कारोबार में लगा दी। अब वह स्थापित बिल्डर है।
ये सभी मुंबई में अलग-अलग ठिकानों से वरदा के अलग-अलग काम करते थे। यही वह दस्ता था, जिस पर वरदा पूरी तरह भरोसा करता था। ये भी कह सकते हैं कि ये तमाम वरदा दरबार के भरोसेमंद पंटर थे। कार के बाहर पीछे छूटती धारावी इलाके की झोपड़पट्टी को निहारते हुए एपी ने कहा:
– शेरों के साथ शेर चले तो ही शिकार अच्छा होता है। वरदा भाई के सभी साथी उसके मांजने के ही थे। (एपी की जुबानी)
(लेखक ३ दशकों से अधिक अपराध, रक्षा, कानून व खोजी पत्रकारिता में हैं, और अभी फिल्म्स, टीवी शो, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज के लिए रचनात्मक लेखन कर रहे हैं। इन्हें महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के जैनेंद्र कुमार पुरस्कार’ से भी नवाजा गया है।)

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