– आरबीआई ने पेश की राज्य की वित्तीय रिपोर्ट
सामना संवाददाता / मुंबई
राज्यों की कर वसूली बढ़ाकर राजस्व बढ़ाने की तमाम कोशिशें नाकाफी साबित हो रही हैं। उनके भारी भरकम खर्चों का ५७ फीसदी हिस्सा ही उनकी अपनी आय से पूरा हो रहा है। दूसरी तरफ खर्चों में ब्याज भुगतान का हिस्सा ११.९ फीसदी है। जिन पांच राज्यों में आय का हिस्सा दो सालों में बढ़ने के बजाय घट रहा है, उनमें औद्योगिक रूप से उन्नत कहे जानेवाले महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात शामिल हैं। यह खुलासा आरबीआई द्वारा पेश की गई राज्य की वित्तीय रिपोर्ट में किया गया है।
राज्यों की राजकोषीय रिपोर्ट पर भारतीय रिजर्व बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार टैक्सों से राज्यों का राजस्व कुल सकल घरेलू उत्पाद का ७.२ फीसदी रहा। पिछले साल यह ६.९ फीसदी था। इस समय राज्यों का सकल राजकोषीय घाटा लगातार तीसरे साल बढ़कर ३.२ फीसदी हो गया है। यह पिछले चार साल में सबसे ज्यादा है। इससे पहले कोविड वर्ष २०२०-२१ में यह ४.१ फीसदी था। यह रिपोर्ट राज्यों द्वारा २४-२५ में पेश किए जानेवाले बजट से तैयार की जाती है। इसके मुताबिक, राज्यों को मिलनेवाले कुल राजस्व का १२.१ फीसदी हिस्सा कर्ज चुकाने पर ही खर्च होगा। राज्य जीएसटी संग्रह दो वर्षों से २० फीसदी की दर से बढ़ रहा है। हालांकि, इस साल यह घटकर १५ फीसदी के आस-पास रह सकता है। राज्यों का कुल राजस्व जमा ३६.५५ लाख करोड़ रुपए रहा। इसके मुकाबले खर्च ४३.७६ लाख करोड़ रुपए रहा।
मुद्रास्फीति के कारण रुकी कर वृद्धि
वित्तीय विशेषज्ञों का कहना है कि जीएसटी के बाद राज्यों के पास राजस्व बढ़ाने के सीमित स्रोत हैं। महंगाई के दौर में शराब, पेट्रोल, डीजल पर वैट व बिक्री कर से राजस्व में ज्यादा बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं है। आवास की कीमतें पहले ही बहुत बढ़ गई हैं। राज्य स्टैंप ड्यूटी बढ़ाने जैसे अलोकप्रिय पैâसले लेने से बच रहे हैं। गैर-कर राजस्व बढ़ाने का कोई उन्नत मार्ग नहीं है। ऐसे समय में उनके पास अपनी आय बढ़ाने के बहुत ही सीमित साधन हैं।