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महायुति सरकार नहीं लगा पा रही लगाम, चिकनगुनिया के शिकार हो रहे नौनिहाल

आईसीयू में भर्ती होनेवाले मरीजों की संख्या बढ़ी एक साल में ५० फीसदी बढ़े मामले
सामना संवाददाता / मुंबई
महाराष्ट्र में भले ही इस समय बारिश की रफ्तार थम गई है, लेकिन मौसमी बीमारियों का खतरा नहीं टला है। मुंबई समेत महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों में अन्य मौसमी रोगों के साथ ही चिकनगुनिया भी फन उठाए खड़ा हुआ है, जिस पर लगाम लगाने में महायुति सरकार नाकाम साबित हो रही है। दूसरी तरफ पिछले साल की तुलना में इस वर्ष यह रोग ५० फीसदी बढ़ गया है। इसके सबसे ज्यादा शिकार नौनिहाल हो रहे हैं, जिन्हें आईसीयू में भर्ती कराने तक की नौबत आ रही है।
उल्लेखनीय है कि राज्य स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, जनवरी से १० सितंबर के बीच महाराष्ट्र में चिकनगुनिया के २,६४३ मामले सामने आए, जो पिछले साल से करीब ५० फीसदी अधिक है। स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक, इससे बच्चे सबसे ज्यादा और तेजी से प्रभावित हो रहे हैं। कुछ मामलों में तो उन्हें आईसीयू में भर्ती करने की आवश्यकता पड़ रही है। संक्रामक रोग विशेषज्ञों के मुताबिक इस साल चिकनगुनिया ने बहुत ज्यादा असर दिखाया है। इस साल अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या भले ही कम रही है, लेकिन कई मरीजों में गंभीर सूजन की शिकायत दिखाई दी। इसी वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आई। पुणे के नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ. सचिन शाह ने कहा कि उन्होंने पहले कभी इतने सारे बच्चों को चिकनगुनिया से पीड़ित नहीं देखा। डॉ. शाह ने बताया कि चिकनगुनिया से पीड़ित पांच नवजात शिशुओं में से दो को यह बीमारी अपनी माताओं से मिली है। सभी को तेज बुखार था और लीवर की कार्यक्षमता बढ़ गई थी, साथ ही प्लेटलेट्स कम थे। वे चिड़चिड़े दिखाई दिए और उनकी भूख कम हो गई थी। प्रत्येक शिशु को एक अजीबोगरीब दाने की समस्या थी, जिससे उनकी त्वचा काली पड़ गई थी। नवजात शिशुओं में से एक को शरीर में अत्यधिक सूजन दिखाई दी।

विस्तार से अध्ययन करने की है जरूरत
राज्य स्वास्थ्य विभाग के डॉ. राधाकृष्ण पवार ने कहा कि जब वर्ष २००६ में महाराष्ट्र में चिकनगुनिया फिर से आया था, तो इसका मुख्य लक्षण गठिया जैसा दर्द था। इसका नैदानिक स्वरूप अब बदल सकता है, लेकिन हमें इस तरह के दावे करने से पहले इसका विस्तार से अध्ययन करने की आवश्यकता है।

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