धीरेंद्र उपाध्याय / मुंबई
महायुति सरकार के शासन में राज्य की स्वास्थ्य सेवाएं भयावह स्थिति में पहुंच चुकी हैं। आलम यह है कि जहां ३४ में से १७ जिलों में सरकारी अस्पताल नहीं हैं, वहीं महिला अस्पताल से १४ जिले आज भी वंचित हैं। इसके चलते मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में लाडली बहनें मर रही हैं, जिसकी फिक्र महायुति सरकार को बिल्कुल भी नहीं है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र में तीन सालों में कुल ३,८३६ महिलाओं की मौत प्रसव के समय हुई है। इसमें सबसे ज्यादा ५६८ मौतें मुंबई में हुई हैं, जबकि एमएमआर क्षेत्र में ९३६ मौतें हुई हैं।
उल्लेखनीय है कि महायुति सरकार आने के बाद मानव संसाधन की कमी के चलते इलाज में हो रही लापरवाही से मरीजों की मौत के मामलों में भी वृद्धि हुई है। समर्थन बजटीय अध्ययन केंद्र के मुताबिक, राज्य में ३६ जिले हैं, लेकिन १७ जिलों में अभी तक जिला और १४ जिलों में महिला अस्पताल नहीं है। इसके साथ ही राज्य में केवल पांच ही टीबी के अस्पताल हैं। फिलहाल, मुंबई समेत राज्य में जिस कदर टीबी रोगियों की संख्या बढ़ रही है, उसे देखते हुए राज्य में टीबी अस्पतालों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है। दूसरी तरफ टीबी रोगों के दवाओं की भी किल्लत महसूस हो रही है।
मुंबई में सर्वाधिक ५६८ गर्भवती महिलाओं की मौतें
राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में प्रसव के दौरान पिछले तीन सालों में कुल तीन हजार ८३६ महिलाओं की मौत हुई है। इसमें वर्ष २०२१-२२ में १,४८८, वर्ष २०२२-२३ में १,२१७ और वर्ष २०२३-२४ में १,१३१ महिलाओं की मौत हुई है। इसमें तीन वर्षों में सर्वाधिक ५६८ मौत मुंबई में हुई है। इसके साथ ही एमएमआर क्षेत्र में भी वर्ष २०२१-२२ में ३२४, वर्ष २०२२-२३ में ३१८ और २०२३-२४ में २९४ समेत कुल ९३६ मौतें हुई हैं। इसमें दूसरे स्थान पर मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का नागपुर जिला है, जहां तीन सालों में ४२७ गर्भवती महिलाओं की मौत हुई है। इसके बाद शिक्षा नगरी पुणे में ३७८ गर्भवती महिलाओं की मौत हुई है।