सामना संवाददाता / मुंबई
महायुति सरकार ने महाराष्ट्र के सभी स्कूलों में सीबीएसई पैटर्न लागू करने का फैसला किया है। इस संबंध में बजट सत्र के दौरान सदन को शिक्षा मंत्री दादा भुसे ने बाकायदा लिखित जवाब दिया है। इसके अनुसार, इस साल से राज्य में सीबीएसई पैटर्न के अनुसार, स्कूलों का पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। हालांकि, इस साल केवल पहली कक्षा के लिए सीबीएसई पैटर्न होगा। उसके बाद अगले साल से यह पैटर्न राज्य के स्कूलों की सभी कक्षाओं के लिए लागू होगा। सीबीएसई पैटर्न लागू करने के बाद भी स्कूलों में मराठी अनिवार्य रहेगी। यह बात मंत्री दादा भुसे ने स्पष्ट की। राज्य के स्कूलों में सीबीएसई पैटर्न लागू करने का राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की नेता व सांसद सुप्रिया सुले ने सीधे तौर पर विरोध किया है।
उन्होंने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा है कि महाराष्ट्र राज्य की शिक्षा परंपरा बहुत उज्ज्वल है, उसे नजरअंदाज करके अन्य बोर्ड का अनुकरण करने का फैसला एक तरह से राज्य के एसएससी बोर्ड को पूरी तरह से बंद करने की चाल है। इस बारे में सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए। इस तरह की मांग भी उन्होंने शिक्षा मंत्री को लिखे पत्र के माध्यम से की है।
सुले ने कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा के बजट सत्र में शिक्षा मंत्री ने राज्य में सीबीएसई पैटर्न लागू करने की घोषणा की। राज्य की शिक्षा परंपरा बहुत उज्ज्वल है, लेकिन उसे नजरअंदाज करके अन्य बोर्ड का अनुकरण करने का निर्णय सरकार ने लिया है। यह बहुत दुखद बात है। उन्होंने कहा कि मुझे अब संदेह होने लगा है कि महायुति सरकार के इस पैâसले से कहीं संत, समाज सुधारक और शिक्षा की उज्ज्वल परंपरा वाले हमारे महाराष्ट्र की पहचान इस निर्णय से मिट तो नहीं जाएगी। यह निर्णय अभिजात भाषा मराठी, संस्कृति और परंपरा के लिए हानिकारक होगा। राज्य सरकार से मेरा आग्रह है कि वे इस निर्णय पर पुनर्विचार करें। सुले ने कहा कि महाराष्ट्र विधानसभा में कल स्कूली शिक्षा मंत्री ने राज्य में जल्द ही सीबीएसई पैटर्न लागू करने की घोषणा की और इसे सुकाणू समिति ने मंजूरी दी है। सुले ने आरोप लगाया कि महायुति सरकार का उद्देश्य अन्य बोर्ड का पाठ्यक्रम लागू करके हमारे राज्य की पहचान एसएससी बोर्ड को पूरी तरह से बंद करना ही है।
अधिकार छीनने की कोशिश कर रही है सरकार
सुले ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए आवश्यक बातें, पर्याप्त भौतिक सुविधाएं, पर्याप्त शिक्षक संख्या, गैर-शैक्षणिक काम का बोझ और उनकी कई समस्याओं का समाधान नहीं होने के कारण शिक्षक आत्महत्या कर रहे हैं। यह बहुत शर्मनाक बात है। वर्तमान में चल रही परीक्षा के समय सारणी के संबंध में भी बड़े पैमाने पर विभिन्न संगठनों और शिक्षा क्षेत्र के विचारकों ने नकारात्मक भूमिका अपनाकर उसमें तकनीकी दोष दिखाए हैं। हालांकि, शिक्षा व्यवस्था अपनी ही बात आगे बढ़ाने की कोशिश कर रही है। इसमें स्थानांतरित होकर आए माता-पिता के गांव जाने की योजना में बदलाव होने से उन्हें बड़ा आर्थिक दंड सहना पड़ेगा। इतना ही नहीं उन्हें असुविधा भी सहनी पड़ेगी।
उन्होंने कहा कि स्कूल संहिता / एमईपीएस एक्ट के अनुसार, निजी स्कूलों के छात्रों का मूल्यांकन करने की पूरी जिम्मेदारी, अधिकार और प्रबंधन स्कूल प्रमुख के रूप में प्रधानाध्यापक का होता है, लेकिन ऐसे महत्वपूर्ण अधिकारियों को विश्वास में लिए बिना और उनसे कोई चर्चा किए बिना सरकार प्रधानाध्यापकों का अधिकार छीनने की कोशिश कर रही है।