सामना संवाददाता / मुंबई
महायुति सरकार के राज में एक और महाघोटाला सामने आया है। राज्य में कुल ७८१ पुरानी और नई औद्योगिक सहकारी संस्थाओं को मंजूरी दी गई है। इनमें से ५०७ संस्थाओं को सरकार के सामाजिक न्याय विभाग द्वारा प्रति संस्था सात करोड़ रुपए की सहायता राशि के रूप में लगभग ३,५४९ करोड़ रुपए मंजूर किए गए। अब तक ५०७ में से ३७२ संस्थाओं को २,६०४ करोड़ रुपए की आर्थिक मदद दी गई है। लेकिन एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि २४५ संस्थाओं ने उत्पादन शुरू होने का झूठा दावा कर १,७५७ करोड़ रुपए का गबन किया है। इतना ही नहीं, कुछ संस्थाओं ने नकली रबर की मुहरें बनाकर सरकार को धोखा दिया है।
उल्लेखनीय है कि पिछड़े वर्ग के युवाओं को उद्यमिता की ओर प्रेरित कर उन्हें मुख्यधारा में लाने के उद्देश्य से २००७-०८ में तत्कालीन सामाजिक न्याय मंत्री चंद्रकांत हंडोरे के कार्यकाल में इस योजना को लागू किया गया था। इस योजना के तहत सरकार ३५ फीसदी इक्विटी प्रदान करती है। विशेष घटक योजना से ३५ फीसदी राशि दी जाती है। इसी तरह बैंकों के माध्यम से २५ फीसदी दीर्घकालिक कर्ज दिया जाता है, जबकि औद्योगिक सहकारी संस्थाओं का पांच फीसदी स्व-अंशदान होता है। इस तरह प्रति संस्था को कुल सात करोड़ रुपए की सहायता दी जाती है। महायुति सरकार ने ४०९ संस्थाओं को मंजूरी दी, जिससे कुल संख्या ७८१ हो गई।
यह है जिलेवार स्थिति
सूत्रों के मुताबिक, छत्रपति संभाजी नगर में ७६ संस्थाओं के कुल प्रोजेक्ट की लागत ५०९.४० करोड़ रुपए है, जिसमें ८१.३० करोड़ रुपए इक्विटी और १६२.६१ करोड़ रुपए दीर्घकालिक कर्ज दिया गया। कुल वितरित राशि २४३.९१ करोड़ रुपए है। जालना जिले में २२ संस्थाओं को १८१.०५ करोड़ रुपए मंजूर किए गए, जिसमें २४.५६ करोड़ रुपए इक्विटी और २४.५६ करोड़ रुपए कर्ज समेत कुल वितरित राशि ४९.०९ करोड़ रुपए है। परभणी जिले में १६ संस्थाओं को ९१.५५ करोड़ रुपए दिए गए, जिसमें २७.३१ करोड़ इक्विटी और ५४.६२ करोड़ रुपए कर्ज हैं। इस तरह कुल वितरित राशि ८१.९३ करोड़ रुपए है। बीड में २१ संस्थाओं की लागत १२३.०९ करोड़ रुपए है, जिसमें २०.७९ करोड़ रुपए इक्विटी और ४०.९६ करोड़ रुपए कर्ज समेत कुल वितरित राशि ६१.७५ करोड़ रुपए है।
१० साल पहले किया था ऑडिट
३७२ संस्थाओं में से केवल ३८ को ही सामाजिक न्याय विभाग ने वास्तविक रूप से उत्पादन करते हुए पाया। लोक लेखा समिति ने १० साल पहले इस योजना का ऑडिट किया था। समाज कल्याण विभाग की जांच में सामने आया है कि २४५ संस्थाओं ने १,७५७ करोड़ की राशि ली, लेकिन उद्योग स्थापित करने की बजाय अन्य अवैध कार्यों में निवेश कर दिया।