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मैथिली व्यंग्य : आम जनता के सोच

डॉ. ममता शशि झा
मुंबई

चुनचुन बाबू सोचलथी जे अहि बेर जरूर भोट खसाब लेल जायब। पछिला बेर भोट नहिं देब के महिरम इ भेल छलनि जे अगल-बगल के छोटका नेता के लगुआ-भगुआ सब सेहो बुझी गेल छलनि जे इ सब चुनाव में भोट नहिं दइ छथिन त इ सब कोनो काजक नहि अछी, बेचारा के बड़ खराब लगइ छलनि जे चुनाव काल में क्यो पूछी नहीं रहल अछी, जहन की जकर कहियो पूछ नहि होइ छइ से सब स बेसी चुनाव काल में महत्वपूर्ण आ बुधियार भ जाय छइ! आ जेबी में पाई अबई छइ त फूर्तियों भ जाइ छइ। अहि तरह के लोक के सोचनाइ छइ जे ओ सब जीत के अगला पाँच साल धन कामयत हमरा सब के अहि काल में जे भेट जाय से किया छोड़ी, ओहुना गरीब के क्यो नहीं पूछतइ जीत भरि तक के जे महत्व अछी तकर फायदा लियेक नहि लेल जाय! आखिर, ओहो सब त अपन नेता स सिख लेलकइया इ बात सब। बूढ़-बुढ़ानुस सब सेहो अपन महत्व बुझइ छथिन आ अपन अनुभव के आधार पर जे भेट जाय चुनाव के आयोजन के काल में से ल के संतुष्ट रहइ छथिन, हुनकर सब के कहनाम छन्ही जे अपन धिया-पुता, जकरा लेल एतेक करइ गेलउ सेह जहन नहिं पूछइया त अहि नेता सब से कि आस राखि। इ सब विचार अबिते छलनि कि छोटकी बेटी सुगंधा आबि क देखेलकनि जे इ वाला ‘रिसॉर्ट’ के बुकिंग के रहल छियइ। अपने सब आ काका, मौसी, मामा सब के परिवार जेबइ एक संगे छुट्टी वाला मौका कम भेटइ छइ। आ पछिला चुनाव में जे अपने सब घूम लेल गेल छलियइ तकर फोटो आ रिल्स देखि क इहो सब गोटे संगे चलत से कहलक और हमर सब के कॉलेज के किछु दोस्त सेहो। हमर सहमति के आस स देखइत, ओ प्रसन्नचिह्न मुद्रा में चुनचुन बाबू दिस देखइत बाजल।
चुनचुन बाबू, ‘अहि बेर हम सब कतहु नहि जा रहल छियइ, इ छुट्टी सरकार भोट खसाब लेल दइ छइ पारिवार के स्नेह-सम्मेलन लेल नहि।
सुगंधा, ‘पिछला बेर त अपने सब गेल रहियइ घूम लेल, आब हम सब संगे बतिया क कार्यक्रम बनेलियइया, ओहुना इ नेता सब जीत क अपना सब लेल की करइया?’
चुनचुन बाबू, ‘हम सब ओ किछु करे तकर डर मोन स हटा देने छियइ भोट नहिं द क।’ ओ सब बुझि गेल छइ जे इ मृतप्राय समाज की आवाज उठायत, जहन बहुत कम वोट स जीततइ तहन समाज के विरोध के बुझतइ, आ किछु काज करतइ ने त चुनाव के आयोजन केवल ओकर लोक के कमाय के जरिया मात्र बनि क रही जेतइ!!’

 

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