मुख्यपृष्ठस्तंभदान पर्व है मकर संक्रांति

दान पर्व है मकर संक्रांति

मकर संक्राति के दिन दान पर्व कहलाता है। कहते हैं कि इस अवसर पर किया गया दान सौ गुना होकर प्राप्त होता है। धर्मग्रंथों में उत्तरायण को सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए ये समय जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि के लिए विशेष है। मकर संक्रांति पर व्रत, अनुष्ठान, हवन, यज्ञ, वेद पाठ, अभिषेक, दान करना चाहिए। ऐसी भी मान्यता है कि इस तारीख से दिन रोज तिल भर बढ़ने लगते हैं, इसलिए इसे तिल संक्रांति के रूप में भी मनाया जाता है। मकर संक्राति का व्रत निराहार, साहार, नक्त या एकमुक्त तरीके से यथाशक्ति किया जा सकता है, जिससे पापों का क्षय हो जाता है और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
शास्त्रों के मुताबिक दैहिक, मानसिक और आत्मिक सुख देने वाला ऐसा ही कर्म है-दान। व्यावहारिक तौर पर दान में देने का भाव ही ‘अहं व स्वार्थ’ जैसी बुराइयों को घटाता है। इसलिए दान के लिए त्याग, निस्वार्थ और विनम्रता के भाव ही सार्थक व सुख देने वाले माने गए है। यही वजह है कि जन्म से लेकर मृत्यु कर्मों तक में धार्मिक नजरिए से दान परंपराएं जुड़ी हैं। चाहे वह अन्न, वस्त्र, जल,धन, पशु दान हो या कन्यादान। मकर संक्रांति के दिन घी व कंबल के दान का भी विशेष महत्व है। इसका दान करने वाला संपूर्ण भोगों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त होता है-
माघे मासि महादेव यो दद्याद् घृतकम्बलम्।
स भुकत्वा सकलान् भोगान् अन्ते मोक्षं च विन्दति।।
मकर संक्रांति के दिन गंगास्नान व गंगातट पर दान की विशेष महिमा है। मकर संक्रांति से महाकुंभ भी शुरू हो रहा है। मकर संक्रांति की रात्रि में एकांत में लाल वस्त्र पहन कर बैठें। सामने दस लक्ष्मीकारक कौड़ियां रखकर एख बड़ा तेल का दीपक जला लें और प्रत्येक कौड़ी को सिंदूर से रंग हकीक माला से इस मंत्र की पांच की पांच माला मंत्र जप करें-
ॐ ह्रीं श्रीं श्रियै फट्
इस प्रयोग से लक्ष्मी शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती है और आपके जीवन में फिर कभी धन की कमी नहीं होती। इस दिन सबसे पहले तो नियम-संयम से पवित्र नदी में स्नान करने को महत्व दिया गया है। यदि पवित्र गंगा का स्नान हो जाए तो सोने में सुहागा जैसी बात हो जाएगी। गंगा स्नान न हो पाए तो नर्मदा, क्षिप्रा, गोदावरी कोई भी नदी स्नान के लिए उपयुक्त है। इस दिन गुड़ व तिल लगा कर नर्मदा में स्नान करना लाभदायी होता है। इस पर्व पर तिल का इतना महत्व है कि स्नान करते समय जल में तिल डालकर स्नान करने का विधान है। तिल हमेशा से ही यज्ञ-हवन सामग्री में प्रमुखवस्तु माना गया है। इसके पश्चात दान संक्रांति में गुड़, तेल, कंबल, फल, छाता आदि दान करने से लाभ मिलता है तथा पुण्य फल की प्राप्ति होती है। भूखों, असहाय लोगों और जरूरतमंदों को खिलाना ज्यादा पुण्यदायी है। स्नान से निवृत्ति के पश्चात अक्षत का अष्टदल कमल बनाकर सूर्य की स्थापना कर पूजन करना चाहिए।
दान के लिए वैसे तो हिंदू पंचांग के सभी बारह माह शुभ हैं, लेकिन इनमें भी कुछ विशेष घड़ियां बहुत अचूक व शुभ मानी गई हैं। इसी कड़ी में शिवपुराण में लिखा है कि जिसे जिस वस्तु की जरूरत हो, उसे बिना मांगे ही दे दी जाए तो ऐसा दान बहुत फलीभूत होता है। ऐसे दान के लिए सूर्य संक्रांति का योग बड़ा ही शुभ माना जाता है। इन खास दिनों पर किया दान धर्म दीनता व दु:खों से बचाने वाला बताया गया है। किसी भी माह की सूर्य संक्रांति के दिन किया गया दान अन्य शुभ दिनों की तुलना में दस गुना पुण्य देता है। सूर्य संक्रांति से भी दस गुना पुण्यदायी सूर्य के विषुव योग यानी सूर्य की विषुवत् रेखा पर स्थिति, जो हिंदू पंचांग के मुताबिक चैत्र नवमी और आश्विन माह की नवमी पर बनता है। विषुव योग से दस गुना फल कर्क संक्रांति यानी दक्षिणायन शुरू होने के दिन। कर्क संक्रांति से भी दस गुना मकर संक्रांति यानी उत्तरायन शुरू होने के दिन। इनसे भी अधिक पुण्य चंद्रग्रहण और सबसे श्रेष्ठ समय सूर्यग्रहण के दौरान व बाद माना गया है। मकर संक्रांति में तिल खाने से तिलदान तक की अनुशंसा शास्त्रों ने की है। संक्रांति पर देवों और पितरों को कम से कम तिलदान अवश्य करना चाहिए। सूर्य को साक्षी रखकर यह दान किया जाता है, जो अनेक जन्मों तक सूर्यदेव देने वाले को लौ:ाते रहते हैं। कहीं-कहीं तीन पात्रों में भोजन रखकर- ‘यम, रुद्र एवं धर्म’ के निमित्त दान दिया जाता है। अपनी सामर्थ्य के अनुरूप दान करना चाहिए।
– शीतल अवस्थी

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