-नवीं बार लोकसभा पहुंचने से चूकीं, सपा के रामभुआल निषाद ने हराया
विक्रम सिंह / सुल्तानपुर
यूपी में इंडिया गठबंधन की ‘आंधी’ ने तमाम दिग्गज राजनीतिज्ञों को पटखनी दे दी है। यहां तक कि दशकों से ‘अजेय’ आठ बार सांसद रह चुकीं ‘गांधी परिवार की छोटी बहू’ पूर्व केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी भी सुल्तानपुर से चुनाव हार गई हैं। उन्हें मूलतः गोरखपुर निवासी समाजवादी पार्टी प्रत्याशी रामभुआल निषाद ने 43,896 वोटों से पराजित कर दिया है।
मोदी सरकार के राष्ट्रवाद के सामने इंडिया गठबंधन ने जातीय समीकरण पर आधारित पीडीए यानी पिछड़ा, दलित व अल्पसंख्यक फार्मूले से ऐसा अचूक चुनावी निशाना भाजपा पर साधा कि पूरा यूपी ही तरकश में बिंध गया। हिंदुत्व की कार्यशाला बन चुका पूर्वांचल तो मानो बिखर ही गया। खास दबदबे वाले अवध क्षेत्र में भाजपा की ऐसी अप्रत्याशित हार हुई कि वो शून्य पर आ पहुंची है। सुल्तानपुर में मेनका के जरिए भाजपा की जीत की हैट्रिक लगाने का सपना भी धरा रह गया है। बता दें कि सत्तर के दशक में तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी ने सुल्तानपुर से ही अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी और उस वक़्त इसी जिले का हिस्सा रहे अमेठी से पहले पराजय और फिर अस्सी में विजय हासिल की थी। उनके असामयिक निधन के बाद मेनका ने कांग्रेस से बगावत कर अपनी पार्टी राष्ट्रीय संजय मंच गठित कर अमेठी से चुनाव लड़कर किस्मत आजमाई, लेकिन सफल नहीं हो सकीं। तदनंतर सन नवासी में वे पहली बार पीलीभीत से जीतकर लोकसभा पहुंचीं और वीपी सिंह की सरकार में मंत्री बनीं, तब से वे आठ बार सांसद और चार गैर कांग्रेसी सरकारों में केंद्रीय मंत्री रह चुकी हैं। मेनका के पहले 2014 में पिता की कर्मस्थली का मोह वरुण गांधी को सुल्तानपुर खींच लाया। वे बीजेपी के टिकट पर यहां से जीते, लेकिन अगली बार 2019 में वे मां की जगह पीलीभीत चले गए और उनकी जगह मेनका गांधी यहां से जीतकर संसद पहुंची। हालांकि, भाजपा नेतृत्व से संबंध सामान्य न होने का खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा। उनका मंत्री पद छिन गया पार्टी संगठन में भी कद कमतर कर दिया गया। सरकार की नीतियों की आलोचना को लेकर बेटे वरुण गांधी का भाजपा से टिकट काट दिए जाने का दंश भी वे झेल रही थीं। ऐसे में जब कांग्रेस एक बार फिर इस चुनाव में ऊर्जस्वित होती दिख रही और राहुल-प्रियंका की जोड़ी अपनी पारिवारिक सरजमीं अमेठी-रायबरेली में भाजपा को पराजित कर विजेता की मुद्रा में है, तब गांधी परिवार का भगवा चेहरा बन चुके मेनका-वरुण का इस तरह राजनीतिक हाशिये पर चले जाना भाजपा के लिए भी दूरगामी प्रभाव छोड़ सकता है।